असम : नागरिकता संशोधन विधेयक पर बीजेपी में बढ़ती दरार


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देश के उत्तर पूर्वी राज्य असम से बीजेपी के लिए अच्छी खबरें नहीं आ रही हैं. नागरिकता संशोधन विधयेक को लेकर बीजेपी से विरोध के स्वर बढ़ने लगे हैं. इसे देखते हुए बीजेपी के राष्ट्रीय सचिव राम माधव कार्यकर्ताओं से बातचीत करने असम पहुंचे हैं.

बीते कुछ दिनों में बीजेपी के चार कार्यकर्ता नागरिकता संशोधन विधेयक पर अपनी नाराजगी जता चुके हैं. विधेयक का विरोध करने वाले विधायकों में अतुल बोरा (दिसपुर), देबानंदा हजारिका (बिहपुरिया), ऋतुपर्ना बरूह (लोहवाल) और पदमा हजारिका (सोतिया) शामिल हैं.

इससे पहले असम विधानसभा के स्पीकर हितेंद्र नाथ गोस्वामी ने भी विधेयक के खिलाफ अपना मत सबके सामने रखा था.

विधेयक के खिलाफ उठती आवाजों पर राम माधव ने कहा कि “विधेयक को लेकर गलत और झूठी खबरे फैलाई गई हैं. इसी की वजह से लोगों में विधेयक को लेकर गलत धारणा बनी है. हम कोशिश करेंगे कि इस पर सबकी चिंताएं दूर करें”. उन्होंने कहा कि विधेयक पर कुछ लोगों का विरोध जायज है.

राम माधव ने बताया कि ये कानून उन लोगों के लिए है जो 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत में रह रहे हैं. आगे उन्होंने कहा, “साथ ही ये भी शर्त है कि व्यक्ति कम से कम छह साल तक भारत में रह चुका है. पूरी जांच के बाद ही किसी व्यक्ति को भारत की नागरिकता दी जाएगी. फिलहाल, लोगों में ये धारणा बन गई है कि इसके तहत किसी को भी नागरिकता दे दी जाएगी, जबकि ऐसा नहीं है. “.

इससे पहले नागरिकता संशोधन विधेयक के मुद्दे पर केन्द्र सरकार के इस रुख पर असम गण परिषद (एजीपी) ने असम के बीजेपी नेतृत्व वाली सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था. जिसके बाद अब राम माधव ने एजीपी से अपने फैसले पर एक बार फिर विचार करने को कहा है.

दरअसल, पूर्वोत्तर राज्यों खासकर असम में ये कहकर विधेयक का विरोध हो रहा है कि सरकार बांग्लादेश से अवैध रूप से आए हिंदुओं को नागरिकता देने का प्रयास कर रही है. विरोध करने वालों के मुताबिक यह 1985 में हुए असम समझौते का सीधा उल्लंघन है.

यह विधेयक, नागरिकता कानून 1955 में संशोधन के लिए लाया गया है. कानून बनने के बाद पड़ोसी मुल्कों के अल्पसंख्यक समुदायों को 12 साल के बजाए छह साल भारत में गुजारने पर बगैर उचित दस्तावेजों के भी भारतीय नागरिकता मिल सकेगी.

नागरिकता संशोधन विधेयक लोकसभा में पास किया जा चुका है. राज्यसभा में यह अभी तक अटका हुआ है.


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