आलोक वर्मा के खिलाफ सीवीसी की बात अंतिम प्रमाण नहीं: जस्टिस पटनायक
सीबीआई के पूर्व डायरेक्टर आलोक वर्मा को उनके पद से एकतरफा ढंग से हटाए जाने की आलोचना जोर पकड़ती जा रही है. इंडियन एक्सप्रेस से जस्टिस ए के पटनायक ने बातचीत में कहा है कि वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार का कोई साक्ष्य नहीं था और इस मामले में सीवीसी की बात को अंतिम प्रमाण नहीं माना जा सकता.
पटनायक सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस हैं और उनकी यह बात इसलिए अहम हो जाती है क्योंकि स्वयं सुप्रीम कोर्ट ने ही उन्हें सीवीसी द्वारा आलोक वर्मा के खिलाफ चलाई जा रही जांच की निगरानी का काम सौंपा था.
जस्टिस पटनायक के अनुसार, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को लिखकर यह स्पष्ट किया है कि उन्होंने सीवीसी जांच की सिर्फ निगरानी की है. सीवीसी जांच में जो भी बातें सामने आई हैं, वे उनका निष्कर्ष नहीं हैं.
जस्टिस पटनायक ने यह भी जोड़ा कि प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति ने आलोक वर्मा को सीबीआई निदेशक पद से बेहद जल्दबाजी में हटाया है.
इससे पहले प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली चयन समिति ने भ्रष्टाचार और कर्त्तव्य में लापरवाही बरतने के आरोप में वर्मा को पद से हटा दिया था. यह दिलचस्प है कि सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा जस्टिस ए के सीकरी भी इस समिति के सदस्य थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जस्टिस सीकरी ने सीवीसी की रिपोर्ट में वर्मा के खिलाफ लगाए आरोपों को ही आधार बनाकर उन्हें निदेशक पद से हटाया.
अब जबकि ए के पटनायक ने यह साफ किया है कि वर्मा को हटाने के लिए सीवीसी की बात को अंतिम प्रमाण नहीं माना जा सकता, तो यह सवाल उठना स्वभाविक है कि आखिर प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली समिति ने किस आधार पर आलोक वर्मा को निदेशक पद से हटाया.