नेता प्रतिपक्ष की नियुक्ति को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई से कोर्ट का इनकार


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17वीं लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष की नियुक्ति को लेकर दायर याचिका को दिल्ली हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया है. याचिका में लोकसभा स्पीकर को नेता प्रतिपक्ष का पद कांग्रेस को देने के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी.

मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की पीठ ने कहा कि उसे ‘इस याचिका पर सुनवाई करने का कोई कारण नजर नहीं आता’ क्योंकि ऐसा कोई कानून नहीं है जो विपक्ष के नेता की नियुक्ति का निर्धारण करता है.

अदालत ने कहा कि विपक्ष का नेता नियुक्त करने की कोई सांविधिक जरूरत नहीं है, अतएव उसे ऐसी नियुक्ति के लिए कोई नीति बनाने का निर्देश देने का कोई कारण नजर नहीं आता.

पीठ ने यह भी कहा कि ऐसी ही एक याचिका 2014 में बिना कोई राहत प्रदान किए निस्तारित कर दी गई थी.

यह जनहित याचिका वकील मनमोहन सिंह नरूला और सुष्मिता कुमारी ने दायर की थी. वकीलों ने आरोप लगाया था कि लोकसभा अध्यक्ष विपक्ष का नेता नियुक्त करने के अपने सांविधिक कर्तव्य का निर्वहन नहीं कर रहे हैं.

मामले की सुनवाई के दौरान दलील दी गई कि सरकार को कई महत्वपूर्ण मामलों और नियुक्तियां करने के लिए नेता विपक्ष की जरूरत होती है. जिससे ऐसे कई अहम पदों की नियुक्ति में देरी होती. 16वीं लोकसभा में भी नेता प्रतिपक्ष की नियुक्ति नहीं कि गई थी. जिससे लोकपाल की नियुक्ति में कोर्ट के आदेश के बावजूद देरी हुई थी.

याचिका में कहा गया था कि 532 सदस्यों के साथ कांग्रेस विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी है. कानून के मुताबिक वह इस पद की असली दावेदार है. इस संबंध में कोई संशय की स्थिति नहीं है, क्योंकि इस नियुक्ति को लेकर कानून बिल्कुल स्पष्ट है. उन्होंने कहा था कि लोकसभा में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी को विपक्ष का नेतृत्व प्रदान करने से रोकना गलत परंपरा होगी. इतना ही नहीं इससे लोकतंत्र कमजोर होगा.

याचिका में कहा गया है कि सत्ता पक्ष पर नियंत्रण कमजोर होगा. याचिका में यह भी कहा गया था कि सत्ता पक्ष पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए शक्तिशाली विपक्ष का होना अनिवार्य है, क्योंकि लोकतंत्र के समुचित ढंग से काम करने के लिए विरोध  सदन नेता प्रतिपक्ष के रूप में मान्यता राजनीतिक या अंकगणितीये फैसला नही है, बल्कि वैधानिक फैसला है.


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