10 फीसदी आरक्षण पर कोर्ट पहुंची डीएमके


age of consent should be below 18: Madras high court

 

तमिलनाडु की प्रमुख विपक्षी पार्टी द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (डीएमके) ने 10 प्रतिशत आरक्षण को चुनौती देते हुए मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की है. पार्टी ने अपनी याचिका में सामान्य आर्थिक पिछड़ा वर्ग को 10 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने के आधार पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह प्रावधान संविधान के ‘‘मूल ढांचे का उल्लंघन’’ करता है.

याचिका में कोर्ट से अनुरोध किया गया है कि इसका निपटारा होने तक संविधान (103 वां) संशोधन अधिनियम, 2019 के क्रियान्वयन पर अंतरिम रोक लगाई जाए. याचिका पर 21 जनवरी को सुनवाई की संभावना है.

डीएमके इस विधेयक को चुनौती देने वाली पहली पार्टी है.

पार्टी ने केंद्र सरकार की योजना पर सवाल उठाते हुए कहा कि आरक्षण कोई “गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम नहीं है, यह एक सामाजिक न्यान की प्रक्रिया है. जिसके तहत पिछड़े समुदाय के लोगों को शिक्षा, रोजगार और प्रतिनिधित्व के अवसर दिए जाते हैं”.

डीएमके सचिव आरएस भारती की ओर से दाखिल याचिका में कहा गया है कि अनुच्छेद 15(5) में समुदाय के पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण दिया गया है. याचिका के अनुसार “संविधान निर्माताओं ने इस अनुच्छेद को आर्थिक आधार पर आरक्षण देने के लिए नहीं बनाया था. पिछड़े वर्गों के लोगों में ‘‘क्रीमी लेयर’’ को बाहर रखने के लिए आर्थिक योग्यता का इस्तेमाल एक फिल्टर के रूप में किया गया है”.

याचिका के मुताबिक, “अनुच्छेद 15 और 16 में संशोधन करने का मकसद आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को एक वर्ग के तौर पर मान्यता देना है, ताकि उन्हें शिक्षा और रोजगार के आधार पर आरक्षण दिया जा सके. साथ ही विशेष प्रावधान की जरिए कथित आर्थिक पिछड़ा वर्ग का विकास किया जा सके”.

उन्होंने कहा कि राज्य में आरक्षण 69 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता. हालांकि, हालिया संशोधन ने आरक्षण को बढ़ा कर 79 प्रतिशत करने को संभव बनाया गया पर यह ‘‘असंवैधानिक’’ होगा.

याचिका में इस आरक्षण को अंसवैधानिक बताया गया है, जो आरक्षण देने के आधारभूत संवैधानिक नियमों का उल्लंघन करता है. संविधान के मुताबिक केवल आर्थिक पिछड़ापन आरक्षण देने का आधार नहीं हो सकता है.

याचिका में दलील दी गई है कि संविधान में संशोधन करने की यह सीमा है कि इस तरह के संशोधनों से संविधान के मूल ढांचे को नष्ट नहीं किया जा सकता.


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