प्रसिद्ध हिंदी लेखक व आलोचक खगेंद्र ठाकुर नहीं रहे
हिंदी के प्रसिद्ध आलोचक और साहित्यकार खगेंद्र ठाकुर का निधन हो गया. 83 साल के खगेंद्र ठाकुर पिछले कुछ समय से बिमार चल रहे थे. पिछले दिनों उन्हें पटना के पीएमसीएच में भर्ती कराया गया था. वहीं उन्होंने अंतिम सांस भी ली.
उनके निधन से हिंदी साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गई है. उनका जन्म झारखंड के गोड्डा जिले के मालिनी गांव में 9 सितंबर, 1937 को हुआ था. प्रगतिशील लेखक संघ के वो राष्ट्रीय महासचिव रहे थे. 1973 से 1994 तक वे बिहार प्रगतिशील लेखक संघ के प्रदेश महासचिव रहे.
स्वास्थ्य बिगड़ने की वजह से पिछले कुछ सालों से उनकी साहित्यिक-राजनीतिक गतिविधियां कम हो गई थी. इसके बावजूद प्रगतिशील लेखक संघ से उनका जुड़ाव बना हुआ था और वो राष्ट्रीय अध्यक्ष मंडल के वर्तमान में सदस्य थे.
प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष अली जावेद ने खगेंद्र ठाकुर के निधन पर कहा, ‘खगेंद्र ठाकुर का अचानक चले जाना न सिर्फ प्रलेस बल्कि देश के समस्त प्रगतिशील लेखक आंदोलन के लिए एक बड़ा नुकसान है. वह पचास साल से ज्यादा प्रगतिशील लेखक आंदोलन से जुड़े थे. अपने लेखन के साथ वो सक्रिय रूप से मार्ग दर्शक के रूप में उनकी अलग पहचान रही. वो 1994 से लेकर 1998 तक प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव पद पर रहे और उसके बाद से अब तक संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष मंडल में रहे. अपने लेखन और भाषण के जरिए वो नए लेखकों की पूरी पीढ़ी के प्रेरणा स्रोत रहे. वो हमेशा हमारे बीच एक बड़े लेखक के तौर पर याद किए जाएंगे.’
जनवादी लेखक संघ ने खगेंद्र ठाकुर के निधन पर बयान जारी किया है, ‘हमारे समय के महत्त्वपूर्ण आलोचक और प्रतिबद्ध वामपंथी कार्यकर्त्ता कॉमरेड खगेन्द्र ठाकुर का निधन शोक-संतप्त कर देने वाली खबर है.
1937 में वर्त्तमान झारखंड और तत्कालीन बिहार के गोड्डा जिले के मालिनी गांव में जन्मे खगेन्द्र जी लम्बे समय तक सुल्तानगंज के मोरारका कॉलेज में हिन्दी के प्राध्यापक रहे थे और साहित्यिक-राजनीतिक जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए समय से पहले स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर पटना आ गए थे. वे एकाधिक बार अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव रहे. व्यंग्य की विधा में लेखन करने के अलावा आलोचना के क्षेत्र में वे नियमित योगदान करते रहे. ‘नागार्जुन का कविकर्म’, ‘विकल्प की प्रक्रिया’, ‘आज का वैचारिक संघर्ष और मार्क्सवाद’, ‘आलोचना के बहाने’, ‘समय, समाज व मनुष्य’, ‘कविता का वर्तमान’, ‘छायावादी काव्य भाषा की विवेचना’, ‘दिव्या का सौंदर्य’, ‘रामधारी सिंह दिनकर: व्यक्तित्व और कृतित्व’, ‘कहानी: परम्परा और प्रगति’, ‘कहानी: संक्रमणशील कला’, ‘प्रगतिशील आन्दोलन के इतिहास-पुरुष’ आदि उनकी प्रसिद्ध आलोचना-पुस्तकें हैं.
प्रलेस के सांगठनिक कार्यों के साथ-साथ सीपीआई की जिम्मेदारियों को पूरा करने में काफी समय देने वाले खगेन्द्र जी इतना विपुल लेखन करने के लिए भी समय निकाल पाए, यह उनके अनेक परिचितों और चाहने वालों के लिए आश्चर्यजनक रहा है.
हिन्दी के प्रगतिशील आन्दोलन को दिशा देने में खगेंद्र जी की अहम भूमिका रही है. वे स्वयं प्रगतिशील आन्दोलन के इतिहास-पुरुषों में से एक थे. उनका जाना हिन्दी की दुनिया के लिए एक बड़ी क्षति है. जनवादी लेखक संघ उनकी स्मृति को नमन करता है.