गोरखा जन मुक्ति मोर्चा ने छोड़ा एनडीए का साथ


 

लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी को अपने दीर्घकालिक सहयोगियों से लगातार झटके लग रहे हैं. अब गोरखा जनमुक्ति मोर्चा ने बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए से अपनी लगभग एक दशक पुराना समर्थन वापस लेने की आधिकारिक घोषणा कर दी है. माना जा रहा है कि उसके इस निर्णय से उत्तर बंगाल की कम से कम चार लोकसभा सीटों का गणित प्रभावित होगा.

इन चार सीटों में दार्जिलिंग की सीट भी शामिल है जो इस क्षेत्र में राजनीतिक प्रभाव के लिए बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है. मोर्चा इस सीट पर साल 2009 से ही बीजेपी के साथ रहा है. यह भी माना जाता है कि गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के समर्थन के बिना इस सीट पर कोई भी राजनीतिक दल जीत हासिल नहीं कर सकता.

मोर्चा के अध्यक्ष बिनय तामांग ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को पत्र लिखते हुए यह सूचित किया कि उनकी इच्छा अब किसी तीसरे गठबंधन का समर्थन करने की है. बिनय तामांग और गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के महासचिव अनिल थापा ने कोलकाता के बिग्रेड परेड ग्राउंड में ममता बनर्जी के नेतृत्व में हुई विपक्ष की महारैली में भी हिस्सा लिया था.

ऐसा कहा जा रहा है कि बिनय तमांग के अध्यक्ष बनने के साथ ही मोर्चा एनडीए से जल्द ही अपना समर्थन वापस लेने पर विचार कर रहा था. वह क्षेत्र के लोगों, खासकर चाय बागानों और कुनैन मजदूरों के अधिकारों के सवाल पर भी एनडीए से नाराज चल रहा था. मोर्चा की मांग रही है कि दशकों से इस क्षेत्र में रह रहे चाय बागानों और कुनैन मजदूरों को जमीन पर पट्टे का अधिकार मिले. अब तक उन्हें यह अधिकार हासिल नहीं है और मोर्चा के लगातार मांग करने के बावजूद भी बीजेपी यह मांग पूरा करने में सफल नहीं हुई है.

जानकार मान रहे हैं कि अगर ममता बनर्जी ने बागान मजदूरों के भूमि अधिकारों के सवाल पर सकारात्मक आश्वासन दिया तो क्षेत्र में बीजेपी विरोधी मोर्चा को संजीवनी मिल सकती है. इसका असर सिर्फ दार्जिलिंग ही नहीं बल्कि रायगंज और जलपाईगुड़ी जैसी सीटों पर भी पड़ेगा.

गोरखा जनमुक्ति मोर्चा क्षेत्र के 11 समुदायों को अनुसूचित जाति व जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग लम्बे समय से करता रहा है. केंद्र सरकार ने इस मांग के मद्देनजर साल 2016 में आशोक पाई समिति का गठन भी किया था. लेकिन बीते चार सालों में मोदी सरकार इस समिति के की रिपोर्ट के आधार पर संसद में इन 11 समुदायों को अनुसूचित जाति व जनजाति का दर्जा लाने संबंधी विधेयक नहीं ला सकी है. मोर्चा की एक मांग ये भी है कि गोरखालैंड टेरिटोरिअल एडमिनिस्ट्रेशन (जीटीए) पूर्वोत्तर क्षेत्रों के विकास के लिए बने केंद्रीय मंत्रालय से सीधे लाभ ले सके. विनय तामांग जीटीए के बोर्ड ऑफ एडमिनिस्ट्रेटर्स (बीओए) के चेयरमैन भी हैं.


Big News