कर्नाटक मामले में खड़ा हुआ संवैधानिक संकट, सुप्रीम कोर्ट ने अब स्पीकर के निर्णय लेने पर लगाई रोक


hearing against abrogation of article 370 to be on 14 november

 

कर्नाटक के बागी विधायकों के मामले में अभूतपूर्व संवैधानिक संकट पैदा हो गया है. बागी विधायकों की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अगले मंगलवार तक यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है. इसका मतलब हुआ कि स्पीकर रमेश कुमार विधायकों के इस्तीफे और उनकी अयोग्यता पर तक तक कोई फैसला नहीं ले सकेंगे. सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश की संवैधानिकता पर फिर बहस खड़ी हो गई है.

बीते गुरुवार को कोर्ट ने विधायकों को शाम 6 बजे तक इस्तीफ़ा सौंपने और स्पीकर रमेश कुमार से उस पर बाकी बचे वक्त में निर्णय लेने को कहा था. हालांकि स्पीकर रमेश कुमार ने यह कहते हुए सुप्रीम कोर्ट की बात मानने से इनकार कर दिया था कि संविधान के अनुच्छेद 190 के तहत उसके संवैधानिक दायित्वों को निभाने के लिए कोई समय सीमा तय नहीं की जा सकती. आज शीर्ष कोर्ट ने एक बार फिर स्पीकर रमेश कुमार के मंगलवार तक निर्णय लेने पर रोक लगा दी.

शीर्ष कोर्ट ने यह कहते हुए मामले की सुनवाई मंगलवार तक टाल दी कि इस मामले में कोई फैसला देने से पहले कई संवैधानिक मुद्दों पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है. सीजेआई के नेतृत्व वाली पीठ ने कहा, ” इस बात पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है कि क्या कोर्ट के पास स्पीकर को निश्चित समय सीमा के भीतर निर्णय लेने का आदेश देने का अधिकार है अथवा नहीं.”

विधायकों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कोर्ट से कहा कि कर्नाटक विधान सभा के स्पीकर ने विधायकों के इस्तीफे पर कोर्ट द्वारा निर्धारित समय-सीमा के भीतर निर्णय नहीं लेकर कोर्ट की अवमानना की है. उन्होंने कहा कि विधायकों ने इस्तीफे ऑनलाइन दिए थे जिस पर स्पीकर निर्धारित समय-सीमा के भीतर निर्णय ले सकते थे. उन्होंने कहा कि इस्तीफे के मामले को लंबित रखने का मकसद उन्हें पार्टी व्हिप के प्रति बाध्यकारी बनाना है. उन्होंने दलील दी कि अध्यक्ष को इस्तीफे स्वीकार करने के संबंध में कोई छूट प्राप्त नहीं है.

इसके बाद चीफ स्पीकर की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 190(3)(b) के तहत स्पीकर को यह तय करने का अधिकार है कि विधायकों ने इस्तीफे स्वेच्छा से और बिना किसी दबाव के दिए हैं. उन्होंने कहा कि बागी विधायक अपना बर्खास्तगी टालने के लिए अपना इस्तीफ़ा दे रहे हैं. स्पीकर को यह जांच करने का अधिकार है कि बागी विधायकों ने संविधान की धारा (10) के तहत (दल-बदल कानून) इस्तीफ़ा दिया है या नहीं. इसके लिए स्पीकर को वक्त चाहिए.

वहीं कर्नाटक एच.डी. कुमारस्वामी की ओर से पेश हुए अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि बागी विधायकों में स्पीकर द्वारा निर्णय लेने में हुई तथाकथित देरी से किसी भी मौलिक अधिकार का हनन नहीं हुआ है.बागी विधायकों द्वारा दायर याचिका राजनीतिक है. उन्होंने जोड़ा कि हालांकि अपवाद स्थितियों में कोर्ट स्पीकर के फैसले की समीक्षा कर सकता है लेकिन कोई फैसला लिए जाने से पहले ही कोर्ट स्पीकर को आदेश नहीं दे सकता.

कल कर्नाटक के स्पीकर रमेश कुमार ने बागी विधायकों के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित समय-सीमा के भीतर निर्णय लेने से मना कर दिया था. उन्होंने कहा कि बागी विधायकों ने उनसे सलाह किए बगैर पहले राज्यपाल और फिर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. उन्होंने किया कि उनकी जवाबदेही देश के संविधान के प्रति है. इसके बाद स्पीकर रमेश कुमार ने सुप्रीम कोर्ट में एप्लीकेशन देते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 190 के तहत उसके संवैधानिक दायित्वों को निभाने के लिए कोई समय सीमा तय नहीं की जा सकती. संविधान के अनुच्छेद 190(3)(b) के तहत स्पीकर को यह तय करने का अधिकार है कि विधायकों ने इस्तीफे स्वेच्छा से और बिना किसी दबाव के दिए हैं.


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