जाटों के बीच फिर गहराई आरक्षण की मांग, कहा नहीं देंगे बीजेपी को वोट
लोकसभा चुनाव करीब आते ही जाट आरक्षण की मांग में फिर से तेज़ी आ गई है. इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, मध्यप्रदेश से आए जाट नेताओं का कहना है कि बीजेपी सरकार ने आरक्षण की मांग न मानकर उनके साथ धोखा किया है. जबकि आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य वर्ग के लोगों को सात दिन के भीतर 10 फीसदी आरक्षण दे दिया गया.
हरियाणा में तीन साल पहले आरक्षण की मांग को लेकर किया गया जाट आंदोलन उस समय काफी हिंसक हो गया था. जिसमें करीब 30 लोगों की मौत हो गई थी. वहीं, अब कई जाट नेता मायावती के समर्थन में आ गए हैं.
उत्तर प्रदेश के जाट नेताओं ने कहा है कि वो अपने समुदाय के लोगों से मायावती के लिए वोट डालने को कहेंगे क्योंकि सिर्फ वही उत्तर प्रदेश की एकमात्र ऐसी नेता हैं जिन्होंने जाट आरक्षण का समर्थन किया था. मायावती ने हरियाणा में 2016 में जाट आंदोलन में सरकार की ओर से जाटों पर की गई कार्रवाई की कड़ी आलोचना की थी.
एआईजेएबीएम के मुख्य समन्वयक धरमवीर चौधरी ने कहा, ‘यूपीए सरकार ने हमें केंद्र की नौकरियों में आरक्षण दिया था. लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट में इसे चुनौती दी गई तब वर्तमान एनडीए सरकार ने जान-बूझकर हमारे केस पर गंभीरता से बहस नहीं की. जिसके बाद से सरकार के आदेश को कोर्ट ने रद्द कर दिया. इसके बाद से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमें केवल आश्वासन दे रहे हैं. हम सरकार को चुनौती देते हैं कि जाटों संग अब और बहानेबाजी नहीं चलेगी. हम उन 131 चुनावी क्षेत्रों में भाजपा के खिलाफ चुनाव प्रचार करेंगे जहां जाट वोटरों की संख्या ज्यादा है.
चौधरी ने आगे बताया कि उनके संगठन के लोगों ने अपने समुदाय से मांग की है कि वो अपने सांसदों का जूतों से स्वागत करें क्योंकि वह सांसद में जाट आरक्षण का मुद्दा उठाने में नाकामयाब रहे.
हरियाणा में 30 फीसदी आबादी रखने वाला जाट समुदाय अपने लिए ओबीसी कैटेगरी में आरक्षण चाहता है. हरियाणा में कांग्रेस की भूपेंद्र सिंह हुड्डा सरकार ने 2012 में स्पेशल बैकवर्ड क्लास के तहत जाट, जाट सिख, बिश्नोई और त्यागी समुदाय को आरक्षण दिया था.
यूपीए सरकार ने भी 2014 में हरियाणा समेत 9 राज्यों में जाटों को ओबीसी में लाने की घोषणा की थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने जाटों को पिछ़ड़ा मानने से इनकार कर यूपीए सरकार का ऑर्डर रद्द कर दिया. पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने भी 19 सितंबर 2015 को खट्टर सरकार का भी जाटों सहित पांच जातियों को आरक्षण देने को जारी नोटिफिकेशन को वापस ले लिया.
इसी के बाद से जाट लगातार अपनी मांगों को लेकर मौजूदा सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश में लगे हुए हैं. जिसके चलते 2016 में जाट आंदोलन ने उग्र रूप धारण किया जिसमें कई लोगों की मौत हो गई थी.