जेएनयू मामले में कोर्ट ने संज्ञान लेने से किया इंकार
यह धारणा पहले से ही थी कि जेएनयू में लगे कथित देशद्रोही नारों का मामला घटना के तीन साल बाद राजनीतिक मकसद से इस्तेमाल किया जा रहा है. अब यह धारणा पुष्ट हो गई है.
दिल्ली पटियाला हाउस कोर्ट ने कथित 2016 जेएनयू देशद्रोह मामले में दाखिल चार्जशीट पर संज्ञान लेने से इंकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि दिल्ली पुलिस ने कन्हैया कुमार समेत दस लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल करने के लिए कानूनी पूर्व अनुमति नहीं ली है. कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को जरूरी अनुमति लेने के लिए छह फरवरी तक का समय दिया है.
चार्जशीट दाखिल करने के लिए जरूरी अनुमति नहीं लेने पर कोर्ट ने दिल्ली पुलिस से सवाल किया कि “आपने चार्जशीट बिना अनुमति के क्यों दाखिल की? क्या आपके पास कानूनी विभाग नहीं है”.
इस पर दिल्ली पुलिस ने मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट दीपक शेरावत को बताया कि वो 10 दिनों के अंदर सभी जरूरी अनुमति ले लेंगे. मामले में अगली सुनवाई छह फरवरी को होगी.
दिल्ली पुलिस ने 14 जनवरी को पटियाला हाउस कोर्ट में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के विवादस्पद कार्यक्रम मामले में चार्जशीट दाखिल की थी. इस मामले में दिल्ली पुलिस ने दस लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की है. जिनमें जेनएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार, सैयद उमर खालिद और अनिर्बान भट्टाचार्य शामिल हैं. ये तीनों जेएनयू के छात्र रहे हैं. इसके अलावा सात कश्मीरी- आकिब हुसैन, मुजीब हुसैन, मुनीब हुसैन, उमर गुल, रईस रसूल, बशारत अली और खालिद बशीर भट के खिलाफ चार्जशीट दर्ज की गई है.
दिल्ली पुलिस ने चार्जशीट में कहा है कि इन लोगों ने 9 फनवरी 2016 को हुए एक कार्यक्रम में देशविरोधी नारे लगाए.
यह सवाल शुरुआत से ही अनुत्तरित था कि साल 2016 के मामले में दिल्ली पुलिस निर्धारित 90 दिनों के भीतर चार्जशीट दायर क्यों नहीं कर पाई. निर्धारित 90 दिनों के भीतर चार्जशीट दायर नहीं करने के बावजूद आम चुनाव से ठीक पहले इस मामले पर आगे बढ़ने का राजनीतिक निहितार्थ क्या था? जाहिर है कि दिल्ली पटियाला हाउस कोर्ट की झिड़की के बाद इन सवालों का जवाब स्पष्ट हो गया है.