कृष्णा सोबती नहीं रहीं
हिन्दी की प्रसिद्ध लेखिका कृष्णा सोबती का 93 साल की उम्र में निधन हो गया है. वह काफी दिनों से बीमार चल रही थीं.
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सोबती का जन्म पाकिस्तान में चिनाब नदी के किनारे छोटे से पहाड़ी कस्बे में 18 फरवरी 1925 को हुआ था.
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साल 2017 में 90 साल की उम्र में उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला था. ‘गुजरात पाकिस्तान से गुजरात हिंदुस्तान’ उनके बेहतरीन उपन्यासों में शामिल है. इस उपन्यास में उन्होंने आत्मकथ्यात्मक शैली में भारत-विभाजन की त्रासदी को उकेरा है.
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‘जिंदगीनामा’ उनका एक महाकाव्यात्मक उपन्यास है. इसी उपन्यास की बदौलत सोबती हिंदी में साहित्य अकादमी पाने वाली पहली महिला लेखिका बनी थीं. उन्हें यह पुरस्कार साल 1980 में मिला था. कृष्णा सोबती को वर्ष 1996 में साहित्य अकादमी की फेलोशिप भी मिल चुकी है. वैसे उनको विशेष ख्याति अपने उपन्यास ‘मित्रो मरजानी’ से मिली थी.
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उन्होंने अपने साहित्य में स्त्री की आजादी और न्याय के लिए भी आवाज उठाई है. अपने लेखन की भाषागत प्रयोगशीलता और निडरता के लिए वे हमेशा चर्चित रहीं.
उनका अंतिम संस्कार आज शाम 4 बजे दिल्ली स्थित निगम बोध घाट पर किया जाएगा.