संसद से लेकर सड़क तक विरोध के बीच NMC विधेयक लोकसभा में पारित


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लोकसभा ने ‘राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग विधेयक-2019’ को मंजूरी दे दी है. सरकार ने इस पर विपक्ष के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि एनएमसी विधेयक निहित स्वार्थी तत्वों का विरोधी है. इसमें राज्यों के अधिकारों को बनाए रखते हुए एकल खिड़की वाली मेधा आधारित पारदर्शी नामांकन प्रक्रिया को बढ़ावा देना सुनिश्चित किया गया है.

इस विधेयक को संसद के साथ ही सड़क पर भी जबर्दस्त विरोध का सामना करना पड़ा है. इसके विरोध में 5,000 से ज्यादा डॉक्टर सड़कों पर उतर आए.

निचले सदन में विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री हर्षवर्धन ने कहा कि यह कहना सही नहीं है कि राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (एनएमसी) विधेयक संघीय स्वरूप के खिलाफ है. राज्यों को संशोधन करने का अधिकार होगा, वे एमओयू कर सकते हैं.

विभिन्न विपक्षी दलों के सदस्यों ने इस विधेयक को संघीय भावना के खिलाफ बताया था.

उन्होंने कहा कि किसी भी कॉलेज की स्थापना राज्यों से जरूरत आधारित प्रमाणपत्र प्राप्त किए बिना नहीं हो सकती है. डाक्टरों के पंजीकरण में राज्य सरकारों की भूमिका होगी. मेडिकल कॉलेजों के दैनिक क्रियाकलापों में केंद्र सरकार की कोई भूमिका नहीं होगी.

डा. हर्षवर्धन ने कहा, “एनएमसी विधेयक निहित स्वार्थी तत्वों का विरोधी और लोकोन्मुखी है. यह इंस्पेक्टर राज को कम करने में मदद करेगा. इसमें हितों का टकराव रोकने की व्यवस्था की गई है. डाक्टरों के डाटाबेस से शुचिता सुनिश्चित की जा सकेगी.”

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि इसमें नीम हकीमों को कड़ा दंड देने का प्रावधान किया गया है.

मंत्री के जवाब के बाद डीएमके के ए राजा ने विधेयक को विचार एवं पारित होने के लिए आगे बढ़ाये जाने के खिलाफ मत विभाजन की मांग की. राजा ने इस बिल को गरीब विरोधी, सामाजिक न्याय विरोधी, गैर-लोकतांत्रिक और संघवाद का विरोधी बताया.

सदन ने इसे 48 के मुकाबले 260 मतों से स्वीकार कर लिया. इसके बाद सदन ने कुछ विपक्षी सदस्यों के संशोधनों को खारिज करते हुए विधेयक को ध्वनिमत से मंजूरी दे दी.

इससे पहले कांग्रेस के सदस्यों ने इस विधेयक का विरोध करते हुए सदन से वाकआउट किया.

हर्षवर्धन ने कहा, “मैं सदन को आश्वासन देता हूं कि विधेयक में आईएमए (भारतीय चिकित्सक संघ) की उठाई गयी आशंकाओं का समाधान होगा.”

हर्षवर्धन ने कहा कि एनएमसी विधेयक एक प्रगतिशील विधेयक है जो चिकित्सा शिक्षा की चुनौतियों से पार पाने में मदद करेगा.

उन्होंने कहा कि सरकार ने विभाग संबंधी स्थाई समिति की सिफारिशों के आधार पर विधेयक का मसौदा तैयार किया और इसे पुन: स्थाई समिति को भेजा गया. दोबारा भी स्थाई समिति की अधिकतर सिफारिशों को स्वीकार कर लिया गया.

एनएमसी विधेयक में परास्नातक मेडिकल पाठ्यक्रमों में प्रवेश और मरीजों के इलाज हेतु लाइसेंस हासिल करने के लिए एक संयुक्त अंतिम वर्ष एमबीबीएस परीक्षा (नेशनल एक्जिट टेस्ट ‘नेक्स्ट’) का प्रस्ताव दिया गया है. यह परीक्षा विदेशी मेडिकल स्नातकों के लिए स्क्रीनिंग टेस्ट का भी काम करेगी.

राष्ट्रीय प्रवेश परीक्षा ‘नीट’ के अलावा संयुक्त काउंसिलिंग और ‘नेक्स्ट’ भी देश में मेडिकल शिक्षा क्षेत्र में समान मानक स्थापित करने के लिए एम्स जैसे राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों पर लागू होंगे.

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग से संबंधित संसद की एक स्थायी समिति ने डा. रंजीत राय चौधरी की अध्यक्षता वाले विशेष समूह द्वारा सुझाए गए विनियामक ढांचे के अनुसार भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद में सुधार करने के लिए कदम उठाने की सिफारिश की थी.

सुप्रीम कोर्ट ने 2009 में माडर्न डेंटल कालेज रिसर्च सेंटर तथा अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य एवं अन्य मामले में 2 मई 2016 को अपने निर्णय में केंद्रीय सरकार को राय चौधरी समिति की सिफारिशों पर विचार करने और समुचित कार्रवाई करने का निर्देश दिया था.

इन सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए लोकसभा में 29 दिसंबर 2017 को राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग विधेयक 2017 पुन:स्थापित किया गया था, इसे बाद में विचारार्थ संसद की स्थायी समिति को भेज दिया गया.

स्थायी समिति ने बाद में उक्त विधेयक पर अपनी रिपोर्ट पेश की. समिति की सिफारिशों के आधार पर सरकार ने 28 मार्च 2018 को लोकसभा में लंबित विधेयक के संबंध में आवश्यक शासकीय संशोधन प्रस्तुत किया था, लेकिन इसे विचार एवं पारित किए जाने के लिए नहीं लाया जा सका. 16वीं लोकसभा के विघटन के बाद यह समाप्त हो गया.

विधेयक में चार स्वशासी बोर्डो के गठन का प्रस्ताव किया गया है. इसमें स्नातक पूर्व और स्नातकोत्तर अतिविशिष्ट आयुर्विज्ञान शिक्षा में प्रवेश के लिए एक सामान्य राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश (नीट) परीक्षा आयोजित करने की बात कही गई है.

इसमें चिकित्सा व्यवसायियों के रूप में चिकित्सा व्यवसाय करने हेतु एवं राज्य रजिस्टर और राष्ट्रीय रजिस्टर में नामांकन के लिए एक राष्ट्रीय निर्गम (एक्जिट) परीक्षा आयोजित करने की बात कही गई है .

इसमें भारत में और भारत से बाहर विश्वविद्यालयों और आयुर्विज्ञान संस्थाओं द्वारा अनुदत्त चिकित्सा अर्हताओं की मान्यता तथा भारत में ऐसे कानून एवं अन्य निकायों द्वारा अनुदत्त चिकित्सा अर्हताओं को मान्यता प्रदान करने की बात कही गई है.


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