मद्रास हाई कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन कानून को चुनौती देने वाली याचिका खारिज की


jammu kashmir police doing revolving door arrested amid increased stone pelting incident

 

मद्रास हाई कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन कानून-2019 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका गुरुवार को खारिज कर दी.

अदालत ने 22 अक्टूबर को मामले पर फैसला सुरक्षित रख लिया था. याचिककर्ता ने कानून को असंवैधानिक घोषित करते हुए इसे अमान्य करार देने की मांग की थी.

जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन कानून-2019 में राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख के रूप में विभाजित करने का प्रावधान है. इस कानून को नौ अगस्त को राष्ट्रपति ने मंजूरी दी थी और यह कानून गुरुवार को प्रभावी हो गया है.

जस्टीस एम सत्यनारायण और जस्टीस एन सेशसायी की खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता जम्मू-कश्मीर का निवासी नहीं है.

पीठ ने कहा, ‘अगर कोई व्यक्ति जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा वापस लेने एवं राज्य के विभाजन से असंतुष्ट हो सकता है तो वह वहां का निवासी होगा.’

अदालत ने कहा कि यह मामला उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ के समक्ष विचाराधीन है.

पीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा, ‘उपरोक्त कारणों से यह अदालत रजिस्ट्री की ओर से इस रिट याचिका के संदर्भ में अदालत के न्यायाधिकार को लेकर जताई गई आपत्ति को कायम रखती है.’

तमिल समूह दसिया मक्कल शक्ति कात्ची (डीएमएसके) की ओर से दायर याचिका में कहा गया था कि संसद केंद्रीय एवं समवर्ती सूची के उन मामलों में कानून नहीं बना सकती जिनका उल्लेख जम्मू-कश्मीर के विलय पत्र में नहीं है.

डीएमएसके ने आशंका जताई कि जो जम्मू-कश्मीर के साथ हुआ वह तमिलनाडु के साथ भी हो सकता है. इसपर पिछली सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा था कि पूर्वाग्रह का उत्तर नहीं दिया जा सकता.

गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद-370 के अधिकतर प्रावधानों को रद्द करने एवं राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने के केंद्र सरकार के फैसले की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ 14 नवंबर को सुनवाई करेगी.


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