कंप्यूटर निगरानी मामले में सुप्रीम कोर्ट का केंद्र को नोटिस


hearing against abrogation of article 370 to be on 14 november

 

कंप्यूटर निगरानी मामले में पीयूसीएल की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा है. याचिका में टेलीग्राफ एक्ट और सूचना प्रौद्योगिकी कानूनों के तहत राज्य की निगरानी की शक्ति की वैधता को चुनौती दी गई है.

पीयूसीएल (पीपुल्स यूनियन फ़ॉर सिविल लिबर्टीज़) ने अपनी याचिका में 2009 के सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम और सूचना प्रौद्योगिकी की प्रक्रिया की संवैधानिक वैधता के नियमों पर सवाल खड़े किए गए हैं. साथ ही आरोप लगया है कि केंद्र सरकार इस कानून का दुरुपयोग कर रही है.

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच ने मामले की सुनवाई करते हुए सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, इलेक्ट्रानिक्स और संचार मंत्रालय को नोटिस भेजा है.

बेंच ने गृह मंत्रालय के 20 दिसंबर के आदेश को चुनौती देने वाली पूर्व याचिकाओं का भी हवाला दिया. जिसके तहत दस सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों को किसी भी कंप्यूटर से कोई भी सूचना हासिल करने का अधिकार दिया गया था.

पीयूसीएल ने अपनी दलील में राज्य की ओर से शक्तियों के अंधाधुंध इस्तेमाल की ओर इशारा किया.

सरकार ने 24 दिसंबर को किसी भी कंप्यूटर प्रणाली को इंटरसेप्ट करने, उसकी निगरानी और कूट भाषा का विश्लेषण करने के लिए 10 केन्द्रीय एजेंसियों को अधिकृत करने संबंधी सरकार के नए नियम को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. इस आदेश के खिलाफ कई अन्य याचिकाएं भी दायर की गई थीं.

गृह मंत्रालय ने यह आदेश सूचना प्रौद्योगिकी कानून, 2000 की धारा 69 (1) के तहत जारी किया था. धारा 69 (1) देश की संप्रभुता, अखंडता, राज्य की सुरक्षा और कानून व्यवस्था के व्यापक हित में सरकार को सूचनाओं की निगरानी करने और उनके प्रसार को नियंत्रित तथा अवरुद्ध करने का अधिकार देती है.


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