सबरीमला मामले को सुप्रीम कोर्ट ने सात जजों की बेंच को सौंपा
सुप्रीम कोर्ट ने आज सबरीमला मामले में दिए गए उसके फैसले की समीक्षा की मांग करने वाली याचिकाएं सात जजों की बड़ी बेंच को सौंप दी. सुप्रीम कोर्ट ने आज कहा कि धार्मिक स्थलों में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध केवल सबरीमला तक ही सीमित नहीं है बल्कि अन्य धर्मों में भी ऐसा है.
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने अपनी ओर से और जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस इन्दु मल्होत्रा की ओर से फैसला पढ़ा. इसमें उन्होंने कहा कि सबरीमला, मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश और दाऊदी बोहरा समुदाय में महिलाओं में खतना जैसे धार्मिक मुद्दों पर फैसला वृहद पीठ लेगी.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता धर्म और आस्था पर बहस फिर से शुरू करना चाहते हैं.
सबरीमला मामले पर फैसले में जस्टिस आरएफ नरिमन और डीवाई चंद्रचूड़ की राय अलग रही.
मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश पर रोक का हवाला देते हुए चीफ जस्टिस ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को सबरीमला जैसे धार्मिक स्थलों के लिए एक समान नीति बनानी चाहिए .
सीजेआई रंजन गोगोई ने कहा कि ऐसे धार्मिक मुद्दों पर सात जजों की बेंच को विचार करना चाहिए. इसके साथ ही उन्होंने सबरीमला मामले में पुनर्विचार समेत सभी अन्य याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की बेंच के पास भेजीं .
सुप्रीम कोर्ट ने 28 सितंबर 2018 को 4 के मुकाबले एक के बहुमत से फैसला दिया था जिसमें केरल के सुप्रसिद्ध अयप्पा मंदिर में 10 वर्ष से 50 की आयुवर्ग की लड़कियों एवं महिलाओं के प्रवेश पर लगी रोक को हटा दिया गया था.
फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने सदियों से चली आ रही इस धार्मिक प्रथा को गैरकानूनी और असंवैधानिक बताया था.