एनएमसी के विरोध में IMA की हड़ताल, दिल्ली के बड़े अस्पतालों में हड़ताल रद्द


The strike called by the Indian Medical Association (IMA), has called off by top delhi hospitals

 

राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (एनएमसी) विधेयक पारित किए जाने के विरोध में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने बुधवार 31 जुलाई को देशभर में 24 घंटे के लिए हड़ताल करने का आह्वान किया है. यह विधेयक सोमवार 29 जुलाई को लोकसभा में पारित हो गया था. वहीं आईएमए के बैनर तले आज जारी हड़ताल के बीच दिल्ली के सभी बड़े अस्पतालों नें आज सुबह हड़ताल रद्द कर दी.

इनमें एम्स, आरएमएल, एलएजेपी, सफदरजंग समेत कई अस्पतालों के रेजिडेंट डॉक्टरों ने हड़ताल के अपने फैसले को वापस लिया. कुछ डॉक्टरों का कहना है कि अगर राज्यसभा में बिल पेश होगा तभी वे हड़ताल करेंगे.

देशभर के हजारों डॉक्टर इसके विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं. डॉक्टरों ने कहा है कि हड़ताल के दौरान आपात, दुर्घटना, आईसीयू और अन्य संबंधित सेवाएं जारी रहेंगी.

एनएमसी भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) की जगह लेगा.

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) का कहना है कि यह विधेयक गरीबों, छात्रों और लोकतंत्र का विरोधी है. आईएमए देश में डॉक्टरों और छात्रों की सबसे बड़ी संस्था है, जिसमें करीब तीन लाख सदस्य हैं. इसने अपनी स्थानीय शाखाओं में प्रदर्शन और भूख हड़ताल का आह्वान किया है. और आईएमए के साथ एकजुटता दिखाने के लिए छात्रों से कक्षाओं के बहिष्कार का अनुरोध किया है.
आईएमए ने बयान में चेतावनी दी है कि अगर सरकार ‘‘उनकी चिंताओं के प्रति उदासीन रही’’ तो वे अपना प्रदर्शन तेज कर देंगे.

इससे पहले अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन ने प्रदर्शन के मद्देनजर अपना विरोध जताने के लिए काली पट्टी बांधकर काम करने का फैसला किया था.

आईएमए के राष्ट्रीय अध्यक्ष शांतनु सेन ने कहा कि आईएमए इस विधेयक को खारिज करती है और उसका प्रदर्शन जारी रहेगा.

आईएमए के महासचिव आर वी अशोकन ने कहा, ‘‘इससे सिर्फ नीम-हकीमी को वैधता मिलेगी और लोगों की जान खतरे में पड़ जाएगी.’’

मंगलवार को एफओआरडीए के प्रतिनिधियों और एम्स रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन ने ‘‘अलोकतांत्रिक और गैर संघीय’’ विधेयक के खिलाफ कार्रवाही को लेकर फैसला करने के लिए आपात बैठक की थी. उन्होंने कहा था कि उनके बीच मौजूदा रूप में विधेयक का विरोध करने पर सहमति बनी है.

एम्स आरडीए के अध्यक्ष अमरिंदर सिंह मलही और छात्र यूनियन के अध्यक्ष मुकुल कुमार ने एक संयुक्त बयान में कहा था, ‘‘हमें अब भी उम्मीद है कि विधेयक को राज्यसभा में पारित किए जाने से पहले इसमें कुछ आवश्यक संशोधन किए जाएंगे.’’

एनएमसी विधेयक देश में चिकित्सा शिक्षा को विनियमित करने के इरादे से लाया गया है.

इस विधेयक के तहत केवल एक परीक्षा का प्रावधान है. स्नातक कर रहे विद्यार्थियों के फाइनल परीक्षा के तौर पर नेशनल एग्जिट टेस्ट (एनईएक्सटी) , स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों दाखिले हेतु प्रवेश परीक्षा को मान्यता देना, इसके अलावा विदेशों से स्नातक कर के आए विद्यार्थियों के लिए एक स्क्रीनिंग टेस्ट का प्रावधान है.

भारतीय चिकित्सा संघ के महासचिव डा. आरवी असोकन ने कहा, “एक ही परीक्षा तीनों का फैसला कैसे कर सकता है. अगर किसी छात्र से परीक्षा छूट जाती है तो उसके पास कोई दूसरा विकल्प ही नहीं होगा.”

डॉक्टरों का कहना है कि इस विधेयक में कुछ प्रावधान ऐसे हैं जिससे एनएमसी की स्वायत्तता को खतरा है. इस विधेयक की धारा 45 के अनुसार केन्द्र सरकार एनएमसी के किसी भी सिफरिश को मानने के लिए बाध्य नहीं है. सरकार नीति संबंधित कोई भी आदेश एनएमसी या स्वायत्त बोर्ड को दे सकती है. इसका साफ मतलब है कि संस्थान की स्वयत्तता राजनेताओं और नौकरशाहों के आगे खत्म हो जाएगी.

धारा 45 कहता है कि एनएमसी और स्वायत्त बोर्ड सरकार के नीति निर्देश को मानने के लिए बाध्य है. हालांकि, सराकर उन्हें अपनी बात रखने का मौका देगी.

डॉक्टर चुने हुए प्रतिनिधियों की संख्या कम करने को लेकर भी चिंतित हैं. भारतीय चिकित्सा परिषद में जहां 75 फीसदी प्रतिनिधि हैं. वहीं एनएमसी में केवल 20 फीसदी प्रतिनिधि ही होंगे.

फीस विनियमन को लेकर असोकन ने कहा, “लगभग 50 फीसदी सीटों के लिए फीस विनियमन को लेकर विरोध किया जा रहा है. इससे लंबे वक्त में भ्रष्टाचार बढ़ेगा. प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों और डीम्ड विश्वविद्यालयों में केवल 50 फीसदी सीटों को ही क्यों विनियमित किया जा रहा है. जबकि पहले राज्य सरकारें 85 फीसदी सीटों के लिए ऐसा करती थी. इस प्रावधान में अब भी पेंच है और स्वास्थ्य मंत्री को इस बारे में साफ-साफ बात करनी चाहिए.”


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