कर्ज माफी क्यों नहीं है स्थायी समाधान?


The voices of suppressed farmers in electoral noise

 

हाल ही में तीन राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनी है. वादे के मुताबिक मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की सरकारों ने किसानों की कर्ज माफ़ी की घोषणा भी कर दी है. इसका असर देश के उत्तर पूर्वी राज्य असम में भी देखने को मिला है. असम के मुख्यमंत्री ने 600 करोड़ रुपये किसानों के कर्ज माफ करने की घोषणा कर डाली है.

लेकिन सवाल उठता है कि क्या कर्ज माफी किसानों की समस्या का स्थायी समाधान है? यह एक बड़ा सवाल है. पूर्व आरबीआई गर्वनर रघुराम राजन का मानना है कर्ज माफी करने से कृषि क्षेत्र में निवेश को तो नुकसान पहुंचता ही है, साथ ही राज्य की अर्थव्यवस्था पर भी दबाव पड़ता है. हाल ही में अपनी एक रैली के दौरान राहुल गांधी ने भी कहा था कि कर्ज माफी समाधान नहीं है. स्थायी समाधान ढूंढना एक जटिल काम है.

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार कर्ज माफी के अलावा और क्या पहलू हैं जो किसानों की स्थिति को प्रभावित करती हैं.

भंडारण: पर्याप्त भंडारण सुविधाओं की कमी के कारण भारत के ताजा पैदावार का 20 प्रतिशत हिस्सा बर्बाद हो जाता है. सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट हारवेस्टिंग इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी की रिपोर्ट के अनुसार हर साल लगभग 92 हज़ार करोड़ का अनाज सरकार भंडारण क्षमता नहीं होने के कारण बर्बाद कर देती है.

बिचौलिए: अक्सर, किसान उपज की वास्तविक बाजार कीमतों को नहीं जानते हैं और यहाँ बिचौलिए किसानों का अधिकांश पैसा खा जाते हैं. बिचौलियों के कारण किसान बाजार तक नहीं पहुंच पाता.

एपीएमसी अधिनियम: एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमिटी (एपीएमसी) में सुधारों की कमी के कारण छोटे किसान सीधे सुपरमार्केट, निर्यातकों और कृषि प्रोसेसर को बेचने से वंचित रह जाते हैं.

वित्तीय जागरूकता की कमी: नेशनल सेंटर फॉर फाइनेंसियल एजुकेशन (एनसीएफइ) के सर्वे के मुताबिक किसान बुनियादी वित्तीय उत्पादों से अवगत नहीं हैं. केवल 1.67 प्रतिशत से कम किसान फसल बीमा उत्पादों से अवगत हैं. बीमा जानकारी के आभाव के कारण वे संबंधित लाभ नहीं ले पाते हैं.

कृषि बाजार की कमी: मंडी बाजार या तो बहुत दूर हैं या सुचारु रुप से नहीं चल पाते हैं. फसल तैयार होती है तो बेबस और लाचार हो कर इन फसलों को औने-पौने दामों में बेचने को मजबूर हो जाते हैं और इसी का फायदा उठा कर बिना मेहनत के बड़े-बड़े व्यवसायी लाभ कमाते हैं क्योंकि किसानों की कनेक्टिविटी मार्केट से नहीं हैं. उनके लिए कोई व्यावहारिक रूप से बाजार की व्यवस्था नहीं है.

भारत का बैंकिंग सिस्टम: भारत का बैंकिंग सिस्टम किसी भी कीमत पर किसानों की कर्ज माफ़ी जैसे योजना का समर्थन नहीं करता है. एक बार जिनका कर्ज माफ़ हो गया है उन्हें कर्ज देने में बैंक भी आनाकानी करते हैं. और ऐसे में किसानों के सामने साहूकारों से ज्यादा ब्याज दर पर कर्ज लेने के सिवाय कोई रास्ता नहीं बचता. कई किसान आज भी ऐसे हैं जिनका बैंक में अकांउट नहीं है. देश के करीब पैंतालीस फीसदी छोटे किसान अभी भी स्थानीय महाजन यानी गैर संस्थागत कर्ज स्रोतों से कर्ज लेते हैं. बैंक चाहे सार्वजनिक क्षेत्र के हों, निजी क्षेत्र के हों या सहकारी क्षेत्र के बैंक हों, आजादी के 70 साल बाद भी एक तिहाई किसान ही ऋण संबंधी सुविधा से जुड़ पाए हैं. आज भी लगभग दो तिहाई किसान संस्थागत ऋण सुविधा से वंचित हैं.

पानी बिजली की आपूर्ति: पानी और बिजली एक बड़ी समस्या है. छोटे लैंड होल्डिंग पर सिंचाई कवरेज 40 प्रतिशत से कम है, खराब बारिश वर्षों से फसल की बर्बादी का कारण बनती आई है.

कैसे हो सकता है समाधान

– भंडारण की सही व्यवस्था

– किसान संघ, सहकारिता और कृषि उत्पाद की मार्केटिंग को बढ़ावा दिया जाए

– कम लागत में अधिक फसल उत्पादन के लिए तकनीक विकसित हो

– ई-मंडियों की शुरुआत

– स्थानीय स्तर पर संसाधनों में बढ़ोतरी का प्रयास हो

– अंतरराष्ट्रीय बाजार के साथ घरेलू बाजार को जोड़ना

– जल स्रोत के लिए छोटे-छोटे पोखर और वाटर शेड का निर्माण हो

– बिचौलियों की भूमिका खत्म हो, किसानों को उनकी फसल की वाजिब कीमत मिले

– न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम कीमत पर फसल खरीदने वालों पर शिकंजा कसे

– किसानों के लिए सब्सिडी योजना लागू हो, उन्हें व्यापारिक फसलों के लिए प्रोत्साहित किया जाए

– कृषि क्षेत्र और उत्पाद का बीमा कराया जाए, संयुक्त खेती को बढ़ावा मिला


प्रसंगवश