ग्लोबल वार्मिंग पर अब नहीं चेते तो देर हो जाएगी
ग्लोबल वार्मिंग की गंभीर चिंताओं के बीच संयुक्त राष्ट्र की संस्था इंटरगर्वमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की एक रिपोर्ट आई है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए हमारे पास बहुत सीमित समय है.
रिपोर्ट में बताया गया है कि ऐसा करना संभव है, लेकिन इसके लिए अभूतपूर्व प्रयास करने होंगे। अब जबकि ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका पेरिस जलवायु समझौते से अपने हाथ पहले ही पीछे खींच चुका है, ऐसे में वैश्विक स्तर पर इस लक्ष्य को हासिल कर पाना टेढ़ी खीर साबित हो सकता है. गौरतलब है कि पेरिस जलवायु समझौते में विश्व के नेताओं के बीच ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 से 2 सेल्सियस तक सीमित रखने पर सहमति बनी थी. ऐसा होने पर बहुत हद कर ग्लोबल वार्मिंग से बचा जा सकता है.
दक्षिण कोरिया के इंचियोन में सोमवार को सभी 195 देशों के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में यह रिपोर्ट जारी की गई. रिपोर्ट में कहा गया है कि तापमान में आधे डिग्री की बढ़ोत्तरी भी गंभीर पर्यावरणीय समस्याओं का कारण बन सकती है. ये पर्यावरणीय समस्याएँ व्यापक तौर पर सूखा, बाढ़, अत्याधिक गर्मी के रूप में सामने आएंगी, जो पूरी दुनिया में बढ़ती गरीबी की वजह बनेंगी.
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पर्यावरणीय खतरे यहीं तक सीमित नहीं हैं, सिर्फ आधा डिग्री तापमान बढ़ने से कोरल रीफ के खत्म हो जाने का खतरा भी रहेगा. समुद्र में पाया जाने वाला कोरल रीफ पर्यावरण संतुलन में महत्तवपूर्ण भूमिका अदा करता है.
ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 से 2 सेल्सियस तक सीमित रखने के इस लक्ष्य को पाने में सबसे बड़ी चुनौती विज्ञान जगत और राजनीतिज्ञों के बीज सामंजस्य न हो पाना है. ट्रंप पहले ही समझौते से बाहर आने की घोषणा कर चुके हैं. इस बीच ब्राजील में हो रहे राष्ट्रपति चुनाव में जैर बोल्सोनारो के आगे होने की सूचना आ रही है, जो पेरिस समझौते के लिए एक और चुनौती है. बोल्सोनारो पहले ही पेरिस समझौते से हाथ खींचने की बात कह चुके हैं.
औद्योगिकीकरण के बाद वैश्विक तापमान में पहले ही 1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धी हो चुकी है. यह अमेरिका में भयानक हरिकेन, केपटाउन में रिकार्ड तोड़ सूखों और आर्कटिक में लगने वाली आग की वजह बताई जा रही है. इस तरह ग्लोबल वार्मिंग ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है. अब इसमें तनिक वृद्धि भी बड़ी समस्या का कारण बन सकती है. इसका सबसे पहला प्रभाव पानी की कमी के रूप में सामने आएगा जो लाखों-करोड़ो लोगों को खाने की गंभीर कमी से जूझने के लिए मजबूर कर देगा.
इसके अलावा उत्तरी गोलार्ध में गर्मी की वजह से होने वाली मौतों में इजाफा होगा और तापमान 2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाने पर 99 फीसद कोरल रीफ विलुप्त हो जाएंगी, लेकिन अगर न्यूनतम लक्ष्य को प्राप्त कर लिया गया तो इसमें से 10 फीसदी को बचाया जा सकता है.
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ग्लोबल वार्मिंग का एक डरावना परिणाम समुद्री के पानी का स्तर बढ़ जाना भी है। इसकी वजह से एक करोड़ लोगों का जीवन प्रभावित होगा. समुद्र जो कि जलवायु परिवर्तन की वजह से पहले से ही अति अम्लीयता और ऑक्सीजन की कमी के शिकार हैं, तापमान बढ़ने से इनमें पनप रहा जलीय जीवन संकट में आ जाएगा.
आईपीसीसी ने 1.5 सेल्सियस के लक्ष्य को पाने के लिए संसाधनों के उपयोग के तरीकों और तकनीकी परिवर्तनों को ध्यान में रखने के अलावा वन भूमि में वृद्धि करनी होगी. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ग्लोबल वॉर्मिंग को 1.5 डिग्री तक सीमित रखने के लिए करीब 2.4 लाख करोड़ डॉलर्स के निवेश की जरूरत होगी. यह वैश्विक जीडीपी का 2.5 फीसद के बराबर है.
(द गार्डियन से साभार)
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