डीयू चुनाव में गूंज रहे राजनीतिक पार्टियों के मुद्दे


issues of political parties in du election

 

दिल्ली विश्विद्यालय के कई छात्र नेता राजनीति का क,ख,ग सीखकर देश की मुख्य राजनीति में अपने नाम का डंका बजा चुके हैं. आने वाले कुछ दिनों में दिल्ली विश्विद्यालय में छात्र संघ के चुनाव होने वाले हैं.

यूं तो देश के कई विश्विद्यालय में छात्र संघ चुनाव होते हैं, लेकिन दिल्ली विश्विद्यालय के छात्र संघ का चुनाव कुछ मायनों में खास होता है.

पहला, दिल्ली विश्विद्यालय में छात्रों की संख्या किसी दूसरे विश्विद्यालय से कई ज्यादा है, जिसकी वजह से दिल्ली विश्विद्यालय में पढ़ाई कर रहे छात्रों की सोच को देशभर के युवाओं की सोच माना जाता है. दूसरा, जिस दिल्ली में बैठकर हुक्मरान देश की राजनीति तय करते हैं, उस शहर के सबसे बड़े विश्विद्यालय में राजनेताओं का दखल भी खूब रहता है. इस वजह से डीयू छात्र संघ चुनाव किसी दूसरे विश्विद्यालय के छात्र संघ चुनाव के मुकाबले ज्यादा विशेष बन जाता है.

इस साल डीयू में छात्र संघ का चुनाव भले ही 12 सितंबर को होने वाला है, लेकिन पिछले कई दिनों से डीयू छात्र संघ चुनाव को लेकर चर्चाएं तेज हो रही हैं. दरअसल, पिछले कुछ दिनों पहले डीयू कैंपस में एक ऐसी घटना घटी जिसने देश में कई लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया. जिस विनायक दामोदर सावरकर ने हिन्दी, हिन्दू और हिन्दुत्व का नारा दिया था उसी सावरकर की मूर्ति को रातोंरात, भगत सिंह और सुभाष चंद्र बोस जैसे स्वतंत्रता सेनानी के साथ लगा दिया गया था. अखिल भारतीय विधार्थी परिषद के इस फैसला का कड़ा विरोध जताते हुए एनएसयूआई और आईसा ने कड़ा विरोध जताया जिसके कुछ दिनों बाद पूरी मूर्ति ही हटा ली गई. मूर्ति डीयू के नॉर्थ कैंपस में लगाई गई थी.

दरअसल, छात्र संघ अखिल भारतीय विधार्थी परिषद कोशिश कर रही है कि जिस प्रकार बीजेपी राष्ट्रवाद को मुद्दा बनाकर लोकसभा चुनाव जीतने में सफल रही, उसी तरह वह डूसू चुनाव भी राष्ट्रवाद के मुद्दे के सहारे जीतने की कोशिश कर रही है. लेकिन, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी {एनएसयूआई और सीवाईएसएस } की छात्र इकाई ने राष्ट्रवाद जैसे मुद्रों को छोड़ ईवीएम का मुद्दा उठाया है. इन छात्र संघ का कहना है कि डूसू चुनाव ईवीएम से न कराया जाए क्योंकि पिछले साल के डूसू चुनाव में ईवीएम को लेकर काफी गड़बड़ी की खबर सामने आई थी.

पिछले साल हुए डूसू अध्यक्ष पद के चुनाव में भले ही अंकिव बसोया ने बाजी मार ली थी, लेकिन कुछ दिनों बाद फर्जी डिग्री के विवाद में फंसने के बाद उन्हें यह पद छोड़ना पड़ा था. इस घटना के बाद अखिल भारतीय विधार्थी परिषद की काफी किरकिरी भी हुई थी इसलिए इस साल होने वाले डूसू चुनाव में अखिल भारतीय विधार्थी परिषद बड़े ध्यान से टिकट देने का काम कर रही है.

छात्र संगठन अपने- अपने सहयोगी राजनीतिक दल के मुद्दे डूसू चुनाव में उठा रहे हैं लेकिन अफसोस इस बात का है कि विश्विद्यालय से जुड़े असल मुद्दों में किसी छात्र संगठन की दिलचस्पी नहीं है. जो छात्र दिल्ली विश्विद्यालय में पढ़ाई कर रहे हैं उनका कहना है कि न तो दिल्ली विश्विद्यालय के कई कॉलेजों की लाइब्रेरी में कोई अच्छी सुविधा है और न ही छात्रों को जरूरत के अनुसार कोई किताब मिल पाती है. कॉलेज में प्रोफेसर की कमी भी एक बड़ी समस्या है, जिसपर कोई छात्र संगठन ध्यान नहीं दे रही है.

जरूरी है कि जवाहर लाल नेहरु यूनिवर्सिटी के छात्र संगठन से सीख लेकर दिल्ली विश्विद्यालय के छात्र संगठन भी ऐसे मुद्दों को उजागर करें जिससे दिल्ली विश्विद्यालय में पढ़ रहे छात्रों को फायदा मिले. भले ही 12 सितंबर को होने वाले डूसू चुनाव कोई भी जीते, लेकिन विश्विद्यालय में पढ़ रहे छात्रों को इससे कुछ फायदा जरूर होगा और तभी ऐसे छात्र संघ चुनाव की प्रतिष्ठा बची रहेगी.


प्रसंगवश