मध्य प्रदेश : चुनाव नतीजों को लेकर कयासों का बाज़ार गर्म


bhopal misa prisoners started getting pension in mp

 

मध्य प्रदेश की 15वीं विधानसभा गठन के लिए मतदान हुए एक सप्‍ताह हो गया. परिणाम आने में अभी इतना ही समय और लगेगा. 11 दिसंबर को मतगणना होने के पहले हर दिन और हर शाम कयासों के बाज़ार में कभी कांग्रेस का पलड़ा भारी होता है तो कभी बीेजेपी के जीत के दावे किए जा रहे हैं. हर तरफ बस यही सवाल है किसकी सरकार बनेगी? सबके अपने-अपने आकलन, अपने-अपने गणित और अनुभव के कारण पर गुणा-भाग हैं.

कई अनुमान कर रहे हैं कि कांग्रेस सत्ता में वापसी कर रही है. 15 साल से सत्ता पर काबिज बीजेपी के विधायकों के प्रति जनता में नाराजी है. यह नाराजी कई बार खुल कर झलकी है. वंशवाद को कोसने वाली बीजेपी ने नेता पुत्रों और रिश्तेदारों को टिकट दिए, इसलिए राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ और बीजेपी के खांटी कार्यकर्ता नाराज हो गए. टिकट वितरण के खिलाफ खुल कर बोला गया. बागी भी मैदान में उतरे और बीजेपी नेतृत्‍व के लिए बागियों को समझाना मुश्किल डगर साबित हुई.

साथ ही पिछले दो सालों में हुए उप चुनावों में अधिकांश में कांग्रेस ने जीत हासिल की है. कांग्रेस ने प्रचार अभियान का मुख्‍य सूत्र किसानों की नाराजगी को बनाया. कहा गया कि उन्हें फसल बीमा योजना या भावांतर योजना का लाभ नहीं मिला और खेती में लगातार घाटा उठाना पड़ रहा है. महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा में कमी नहीं आई है, इसलिए महिलाएं नाराज़ हैं. वर्तमान केन्द्र सरकार की योजनाओं का लाभ लोगों को नहीं मिला और नोटबंदी और जीएसटी से आमजन और व्यापारी परेशान हैं. युवा रोजगार के लिए भटक रहे हैं. सपाक्स का विरोध और उसका चुनाव में उतरना बीजेपी के लिए नुकसानदायक हुआ है.

दूसरी तरफ, भाजपा की जीत के लिए भी तर्क कम नहीं हैं. बीजेपी ने महिलाओं और कमजोर तबके के लिए कई योजनाएं बनाई. शिवराज सिंह चौहान आज भी सबसे ज्यादा लो‍कप्रिय नेता हैं. कांग्रेस में एकजुटता नहीं है और न ही उनके पास मुख्यमंत्री का घोषित चेहरा था. बीजेपी ने सड़कों का जाल बिछाया है. 24 घंटे बिजली दी है। कृषि विकास दर में बढ़ोतरी हुई है। भाजपा के कार्यकर्ता नाराज थे, लेकिन सरकार बनाने के लिए वे वोट डालने में आगे रहे। वोटों का जो प्रतिशत बढ़ा है, वह भाजपा के पक्ष में गया है। कहा जा रहा है कि कांग्रेस का खेल बसपा और सपा बिगाड़ चुकी है, इसलिए भाजपा को आसान जीत मिलेगी। मालवा-निमाड़ को छोड़ दिया जाए, तो हर जगह से कांग्रेस जीत आगे है.

इन दावों के बीच हकीकत यह है कि विधानसभा चुनाव में 75.05 प्रतिशत मतदान ने चौथी बार सरकार बनाने की कोशिश कर रही बीजेपी और डेढ़ दशक से सत्ता का वनवास झेल रही कांग्रेस की चिंता बढ़ा दी है. कोई भी इस बात का सही-सही आंकलन नहीं कर पा रहा कि आखिर बढ़ा हुआ प्रतिशत किसके पक्ष में गया है. एक-दो अपवादों को छोड़ दिया जाए तो ज्यादातर बढ़ा हुआ मतदान प्रतिशत बदलाव का संकेत लिए हुए होता है.

इस बार का बढ़ा हुआ मत प्रतिशत मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए सकारात्मक संदेश लेकर आया है या फिर कांग्रेस के लिए ‘वक्त है बदलाव का’ सूचक है. 2013 के विधानसभा चुनाव में महिलाओं का मतदान प्रतिशत जहां 70.11 था तो वहीं 2018 में 15वीं विधानसभा के लिए हुए मतदान में यह बढ़कर 73.86 प्रतिशत हो गया है. इस प्रकार महिलाओं का मत प्रतिशत 3.75 प्रतिशत बढ़ा है. प्रदेश में 47 विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं जहां महिला मतदाताओं का प्रतिशत ज्यादा है और शहरी इलाकों की तुलना में ग्रामीण इलाकों के मतदाताओं में ज्यादा उत्साह देखा गया है.

दूसरी ओर अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 82 सीटों में से 34 सीटों पर 2013 की तुलना में मतदान में चार प्रतिशत की वृद्धि भी दर्ज की गयी. जिनमें 13 सीटें अनुसूचित जाति के लिए और 21 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए हैं. इन सीटों पर जो मत प्रतिशत बढ़ा वह बदलाव के पक्ष में है या बीजेपी के विकास के नारे के कारण बढ़ा है, इसको लेकर भी राजनीतिक दल अपने-अपने ढंग से अंदाज लगा रहे हैं. कांग्रेस इस बढ़े मतदान को बदलाव के प्रतीक के रुप में आंक रही है तो वहीं बीजेपी इसे शिवराज की छवि का करिश्मा बता रही है.

प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष राकेश सिंह चौथी बार शिवराज के मुख्यमंत्री बनने का दावा करते हुए तर्क दे रहे हैं कि बढ़ा हुआ मतदान बीजेपी के पक्ष में हैं. बीजेपी ने अपना बूथ लेवल फीडबैक लेकर कहा है कि वह 125 सीटें जीत रही है.

कांग्रेस को एकजुट कर पार्टी को मजबूती से चुनाव लड़ने की स्थिति में लाकर खड़ा करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस समन्वय समिति के अध्यक्ष दिग्विजय सिंह का दावा है कि कांग्रेस मध्यप्रदेश में 132 से अधिक सीटें जीतकर अपनी सरकार बनाएगी.


प्रसंगवश