मप्र डायरी: लंबे इंतजार के बाद मोदी सरकार से मिली अधूरी राहत किस काम की?
कहते हैं न्याय समय पर न मिले तो वह न्याय नहीं कहलाता. राहत के मामले में भी यही कथन लागू होता है. राहत समय पर न मिले तो वह राहत नहीं रहती. बस खानापूर्ति रह जाती है. यही हुआ मध्य प्रदेश के किसानों के साथ. रबी की फसल की तैयारी कर रहे मध्य प्रदेश के किसान असल में अतिवृष्टि और बाढ़ से हुए नुकसान की भरपाई ही राह ही तक रहे हैं.
राज्य सरकार के आंकड़ें है कि प्रदेश में 55 लाख किसानों की 60 लाख हेक्टेयर फसल बर्बाद हो गई है. अति-वृष्टि से हुए नुकसान के लिए कांग्रेस सरकार ने केंद्र की मोदी सरकार से 6621.28 करोड़ मांगे थे. मगर केन्द्र ने लंबे इंतजार के बाद एक हजार करोड़ रुपये की राहत राशि ही दी. यह राशि ऊंट के मुंह में जीरे के समान ही कही जाएगी.
मुख्यमंत्री कमलनाथ ने इस पर आभार जरूर जताया मगर याद भी दिलाया कि मध्य प्रदेश के साथ भेदभाव हुआ है. उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार अन्य राज्यों के समान ही मध्य प्रदेश की जनता के प्रति भी उदारता दिखाए.
गौरतलब है कि केन्द्र सरकार ने बाढ़ प्रभावित बिहार और कर्नाटक के लिए नेशनल डिजास्टर रिस्पॉन्स फंड राशि जारी की है. राहत-बचाव और पुनर्वास कार्यों के लिए केंद्र सरकार ने एनडीआरएफ फंड से बिहार को 400 करोड़ और कर्नाटक को 1200 करोड़ रुपये देने की घोषणा की है. इसके अलावा केंद्र सरकार ने बिहार के एसडीआरएफ के लिए अपने हिस्से की दूसरी किश्त को अग्रिम रूप से जारी करने का फैसला किया है.
मगर मध्य प्रदेश में बार-बार के आग्रह के बाद भी मात्र एक हजार करोड़ ही दिए गए. किसान की सबसे बड़ी ताकत फसल बीमा की राशि होती है. राज्य सरकार ने खरीफ फसल बीमा के राज्यांश की अग्रिम राशि 509.60 करोड़ का भुगतान बीमा कंपनियों को कर दिया है, लेकिन केन्द्र सरकार ने इस मद में भी राज्यांश राशि 2301 करोड़ रूपये का भुगतान अभी तक नहीं किया है. मतलब किसानों को बीमा का पैसा भी समय पर नहीं मिलेगा.
अगले माह विधानसभा का शीतकालीन सत्र होने वाला है. उस सत्र के बीजेपी किसान मामलों पर सरकार को घेरने की तैयारी कर रही है. ऐसे में केन्द्र से पर्याप्त मदद न होना कांग्रेस के लिए इस घेराबंदी का जवाब होगा.
…तो शिवराज किसान मुख्यमंत्री की ढपली ही बजा रहे थे?
मध्य प्रदेश में बीजेपी के 15 सालों के शासन में 13 सालों तक शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री रहे. इस दौरान पांच बार मध्य प्रदेश को कृषि कर्मण अवार्ड भी मिले. चौहान स्वयं को किसान पुत्र मुख्यमंत्री कहलाते रहे मगर अब खुलासा हुआ है कि बीते चार सालों में राज्य की एग्रीकल्चर ग्रोथ रेट का बीस से चौबीस फीसदी हो जाना झूठ था. कृषि मंत्री सचिन यादव ने मोदी सरकार के ही आंकड़ों के हवाले से यह खुलासा किया है.
केन्द्र सरकार द्वारा 28 सितम्बर 2018 को जारी एक रिपार्ट में भी कहा गया था कि मध्य प्रदेश में पूर्ववर्ती सरकार सीमांत किसान की औसत जोत मात्र 0.49 हेक्टेयर रह गई थी और खेती का रकबा एक लाख 66 हजार हेक्टेयर कम हो गया था.
साल 2013-14 की एग्रीकल्चर ग्रोथ रेट 1.3, 2015-16 में 4.1, 2017-18 में 0.1 फीसदी रही है. यानि पुरानी सरकार ने प्रदेश के खेती और किसानों की दुर्दशा छिपाने के लिए गलत आंकड़े पेश किए. अब सरकार अब पूरे मामले की जांच करवाने की तैयारी में है. प्रदेश सरकार एक मोर्चे पर जहां केन्द्र से पैसा लाने के लिए जूझ रही है वहीं उसे बीजेपी सरकार के गलत आंकड़ों से भी निपटना है.
बीजेपी सरकार के रसूखदार आईएएस पर संकट के गहरे बादल
शिवराज सरकार में सर्वाधिक ताकतवर अफसरों में शुमार वरिष्ठ आईएएस अधिकारी विवेक अग्रवाल पर ईओडब्ल्यू का नया शिकंजा कस सकता है. अभी तक उनके खिलाफ स्मार्ट सिटी घोटाले की जांच चल रही थी लेकिन इसी बीच बीओटी के तहत हुए सड़क निर्माण घोटाले की जानकारियों का खुलासा हो गया.
ईओडब्ल्यू के अधिकारी 104 टेंडरों में घोटालों की पड़ताल कर रहे हैं. दूसरी तरफ, बहुचर्चित हनी ट्रेप मामले में कथित ऑडियो वायरल होने के बाद तात्कालिक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के प्रमुख सचिव एसके मिश्रा के कार्यकाल पर भी उंगलियां उठने लगी हैं.
मिश्रा ने अपने कार्यकाल के दौरान कई बड़े निर्णय लिए हैं. हनी ट्रेप में उनका नाम भी शामिल होने के बाद प्रशासनिक गलियारों में हलचल है. खासकर उन अधिकारियों में जो हनी ट्रेप में फंस चुके हैं और जिनके वीडियो या ऑडियो के बाहर आने का डर है. ऐसे अधिकारी कोर्ट से आस लगाए बैठे हैं कि वह गोपनीय वीडियो व ऑडियो जारी होने से रोकने के लिए सख्त निर्देश दे. कोर्ट ने निर्देश न दिए तो अधिकारियों की पोल खुलना तय है.