शोध के मामले में 15 साल में भारत से 50 गुना आगे निकला चीन : रिपोर्ट


 

भारत अपने पड़ोसी देश चीन से शोध के मामले में काफी पीछे छूट गया है. क्लैरिवेट एनालिटिका की ओर से जारी दुनिया के टॉप 4,000 प्रभावशाली शोधार्थियों में भारत के केवल 10 शोधार्थियों के नाम हैं. जबकि इस सूची में चीन के 482 शोधार्थियों को शामिल किया गया है. चीन 60 देशों की सूची में तीसरे स्थान पर है. सूची में 80 फीसदी शोधार्थी केवल 10 देशों से हैं.

वैज्ञानिक और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की वैज्ञानिक सलाहकार समिति के प्रमुख रहे सीएनआर राव को इस सूची में शामिल किया गया है. वह कहते हैं कि भारत में शोध की गुणवत्ता में सुधार लाने की जरूरत है.

प्रो राव कहते हैं, “15 साल पहले तक भारत और चीन की स्थिति एक जैसी थी. लेकिन आज चीन दुनिया भर में हो रहे वैज्ञानिक शोधों में 15 फीसदी का योगदान कर रहा है, जबकि भारत तीन से चार फीसदी ही कर पाता है.”

जेएनयू के दिनेश मोहन भारत से चुने गए 10 लोगों में एक हैं. वह कहते हैं कि पिछले साल इस सूची में केवल पांच लोग शामिल थे. इस साल ‘क्रॉस फील्ड’ का एक अलग खंड जोड़ने के बाद भारतीय लोगों की संख्या बढ़ी है.

आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर अविनाश अग्रवाल क्लैविरेट एनालिटिका के 4,000 शोधार्थियों की सूची में शामिल हैं. वह बताते हैं कि एप्लाइड रिसर्च को भारत में गंभीरता से नहीं लिया जाता है.

वह कहते हैं, “हमें अपने रिसर्च इकोसिस्टम को बेहतर बनाने की जरुरत है. वह पैसे देकर शोध छपवाने पर दंड का प्रावधान चाहते हैं.

10 लोगों की सूची में ज्योति मित्तल एकमात्र भारतीय महिला हैं. उनके पति आलोक को भी इस सूची में जगह मिली है. दोनों एनआईटी भोपाल से हैं.

दूसरे भारतीय जिन्हें इस सूची में जगह मिली है :-

रजनीश कुमार आईआईटी, मद्रास

संजीव साहू, इंस्टीट्यूट फॉर सेमी-एरिड ट्रॉपिक्स, हैदराबाद

शक्थिवेल रथिनास्वामी, भारथियार विश्वविद्यालय, कोयंबटूर


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