सरकार के पत्र के बाद जस्टिस अकील कुरैशी पर कॉलेजियम की सिफारिश में बदलाव


in ayodhya case sc asks mediation panel to submit status report by 18th july

 

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने गुजरात हाई कोर्ट के जस्टिस अकील कुरैशी को अब मध्य प्रदेश की जगह त्रिपुरा हाई कोर्ट का चीफ जस्टिस बनाने की सिफारिश की है. इससे पहले जस्टिस कुरैशी को पदोन्नति देकर मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में नियुक्ति देने पर केंद्र सरकार ने कॉलेजियम से अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का सुझाव दिया था.

अब पुनर्विचार के बाद कॉलेजियम ने जस्टिस कुरैशी को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की जगह त्रिपुरा हाई कोर्ट का चीफ जस्टिस बनाने का प्रस्ताव दिया है.

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने 10 मई को गुजरात हाई कोर्ट में जज कुरैशी को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में पदोन्नत कर चीफ जस्टिस बनाने की सिफारिश की थी. हालांकि केंद्र ने नियुक्त पर फैसला अपने पास रोक कर रखा था और 7 जून को राष्ट्रपति के आदेश के बाद जस्टिस रवि शंकर झा को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में कार्यकारी चीफ जस्टिस नियुक्त किया गया.

ऐसे में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में चीफ जस्टिस की नियुक्ति पर सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिश को सरकार ने दरकिनार कर दिया.

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 28 अगस्त को कहा था कि उसे कानून एवं न्याय मंत्रालय से जस्टिस कुरैशी की पदोन्नति के लिए कॉलेजियम की सिफारिश के बारे में एक पत्र मिला है.

सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर शुक्रवार देर रात जारी प्रस्ताव में लिखा है कि “23 अगस्त 2019 और 27 अगस्त 2019 को प्राप्त जानकारी और संबंधित दस्तावेज पर पुनर्विचार के बाद कॉलेजियम 10 मई की सिफारिश में बदलाव करते हुए जस्टिस एए कुरैशी को त्रिपुरा हाई कोर्ट का चीफ जस्टिस बनाने का प्रस्ताव रखता है.”

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट देश से सबसे बड़े हाई कोर्ट में से एक है. जबकि त्रिपुरा हाई कोर्ट तुलनात्मक तौर पर छोटा कोर्ट है.

जस्टिस कुरैशी की पदोन्नति में हो रहे विलंब के मद्देनजर गुजरात हाई कोर्ट एडवोकेट्स एसोसिएशन ने शीर्ष अदालत में याचिका दायर की थी. इसमें दावा किया गया था कि कॉलेजियम की 10 मई की सिफारिश के बावजूद केन्द्र ने अभी तक न्यायमूर्ति कुरैशी के नाम को अधिसूचित नहीं किया है.

याचिकाकर्ता वकीलों ने इस देरी व लापरवाही को जजों की नियुक्ति के लिए तय प्रक्रिया यानी MoP (मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर) के साथ-साथ संविधान के अनुच्छेद 14 और 217 का भी हनन बताया था. वहीं जजों की नियुक्ति में हो रही देरी को लेकर वकीलों के संगठनों ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया था कि अन्य सभी राज्यों के मुख्य न्यायाधीशों की नियुक्ति में वो देरी नहीं कर रही है.


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