उर्जित पटेल ने चेताया, बैकों पर कर्ज देने का दबाव राजकोषीय घाटा बढ़ाएगा


before budget urijit patel wans modi govt on over lending

 

आरबीआई के पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल ने नई सरकार को बजट से पहले चेतावनी देते हुए कहा है कि वह सार्वजनिक क्षेत्र के बैकों पर ऋण देने के लिए अतिरिक्त दबाव ना बनाए क्योंकि इससे बैड लोन और राजकोषीय घाटा बढ़ेगा. उन्होंने भारत में बढ़ते एनपीए और बैंकिंग क्षेत्र की विफलताओं पर सरकार के नीतियों के संबंध में कई अहम सवाल खड़े किए.

बीते साल दिसंबर में आरबीआई गवर्नर के पद से इस्तीफा देने के बाद यह पहली बार है जब उर्जित पटेल ने सरकार की आर्थिक नीतियों पर अपना पक्ष रखा है.

उन्होंने कहा, “सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को अर्थव्यवस्था को गति देने वाले क्षेत्रों की मदद के लिए जबरन धकेला जा रहा है.”

ये सभी बातें उन्होंने 3-4 जून को स्टेनफोर्ड में हुई सालाना कॉन्फ्रेंस में ‘भारतीय अर्थव्यवस्था नीति’ पर दिए गए एक प्रेजेंटेशन के दौरान कहीं हैं. उन्होंने कहा कि इस तरह सार्वजनिक बैंकों को अर्थव्यवस्था को गति देने वाले क्षेत्रों के जरुरत से ज्यादा मदद करने से बैकों का एनपीएक और अंततः राजकोषीय घाटा बढ़ता है.

पटेल की प्रेजेंटेशन के प्रमुख बिंदुओं को आज बजट से एक दिन पहले 4 जुलाई को जारी किया गया.

और पढ़ें: आम बजट के बारे में जानिए ये पांच रोचक तथ्य

पटेल ने अपना तीन साल का कार्यकाल खत्म होने से नौ महीने पहले ही आरबीआई गवर्नर के पद से इस्तीफा दे दिया. पद पर रहते हुए आरबीआई रिजर्व, वित्तीय क्षेत्र में तरलता, छोटे उद्यमों को ऋण, बैंकों पर नियंत्रण समेत आर्थिक मुद्दों पर सरकार के साथ उनके मतभेद रहे थे.

साल 2014 से पहले बैंकिंग क्षेत्रों में रही तमाम समस्याओं के लिए सरकार और आरबीआई की भूमिका पर सवाल खड़े किए. उन्होंने बैंकिंग क्षेत्र में रही सरकार की नाकमियों को रेखांकित करते हुए कहा,”सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक बैड लोन्स को पहचानने में नाकामयाब रहे और आरबीआई भी इस समस्या को पहचानने और इससे निपटने में नाकामयाब रहा.”

उर्जित ने जोखिम प्रबंधन नीतियां और जरूरत से ज्यादा ऋण देने के लिए भी बैंकों को जिम्मेदार ठहराया. भारतीय अर्थव्यवस्था में हाल के सालों में एनपीए दुनिया की सभी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में सबसे अधिक रहा है.

पटेल ने कहा कि सरकारी बैंक के एनपीए में निजी बैंकों की अपेक्षा अधिक वृद्धि हई है. उन्होंने कहा, “करीबन 90 फीसदी घोटाले सरकारी बैंको में हुए जबकि निजी बैंकों में आंकड़ा 10 फीसदी रहा. साल 2013-14 के बाद पिछले पांच सालों में यह चार गुना बढ़ा है.”

भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता कोड (आईबीसी) पर उन्होंने कहा कि “देर से कार्रवाई करना भारी पड़ सकता है. सार्वजनिक क्षेत्र के बैकों के पास अर्थव्यवस्था को गति देने वाले प्रमुख क्षेत्रों को कर्जा देने के लिए कोई स्पष्ट नीति नहीं है. ज्यादातर बैंकिंग क्षेत्र पर सरकार का नियंत्रण है.” उन्होंने एनपीए हल करने के लिए सरकार और एजेंसियों के जड़ रवैए पर भी सवाल उठाए.

वो कहते हैं कि बड़े डिफॉल्टरों के खिलाफ निष्क्रियता आईबीसी-2016 की विश्वसनीयता को कम कर रही है. पटेल ने कहा, “अन्य देशों की तुलना में अधिक एनपीए से पता चलता है कि भारतीय बैंकों में पूंजी की कमी है.” उर्जित कहते हैं कि समस्या को टालने या शॉर्टकट अपनाने से हल नहीं निकलेगा.


Big News