राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाओं की बढ़ती लागत पर लगाम लगाए सरकार: सीएजी
भारत के नियंत्रक और महालेखा परिक्षक (सीएजी) ने सरकार से राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाओं की लागत लेखा परीक्षा की मांग की है. सीएजी का मानना है कि परियोजनाओं का खर्च काफी अधिक है. सीएजी ने कहा है कि सरकार को अपने कर्ज बढ़ाने वाले कदम पर रोक लगानी चाहिए.
मामले के जानकार एक ऑफिसर के मुताबिक सीएजी ने भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) की परियोजनाओं के बढ़ते हुए खर्च पर चिंता जताई है. सीएजी ने इसके लिए वित्त मंत्रालय को आगाह किया है. सीएजी ने कहा है कि एनएचएआई द्वारा लिया गया ऋण सरकार के लिए भी ऋण है, और उसी के मुताबिक इसका हिसाब होना चाहिए.
विशेषज्ञों का मानना है कि एनएचएआई की ऋण की स्थिति चिंता का विषय है. माना जा रहा है कि चालू वित्त वर्ष (2019-20) या वित्त वर्ष 2020 के आखिर तक यह 2.5 ट्रिलियन का हो जाएगा. अगले दो दशकों में सालाना ब्याज का भुगतान लगभग 25 हजार करोड़ रुपये होने का अनुमान है.
एनएचएआई के लिए आय का मुख्य स्त्रोत टोल से प्राप्त राजस्व और सरकारी अनुदान (ग्रांट्स) होता है. पिछले साल से यह पूरी हो चुकी परियोजनाओं का मुद्रीकरण करता आ रहा है. टोल से लगभग आठ हजार करोड़ से नौ हजार करोड़ रुपये आएगा. इसका इस्तेमाल राजमार्गों की देखरेख में खर्च किया जाएगा.
वित्त वर्ष 2020 में एनएचएआई का ऋण लक्ष्य 21 फीसदी का है. इसका मानान है कि यह 75 हजार करोड़ रुपये जुटा सकती है. इसके अलावा सरकार 36,691 करोड़ रुपये की सहायता भी प्रदान करेगी.
वित्त वर्ष 2019 में एनएचएआई ने कुल 62 हजार करोड़ रुपये जुटाए थे. इसमें अलग-अलग बैंकों से लिए ऋण, टोल राजस्व और सड़क मुद्रीकरण योजना शामिल है.
अगर एनएचएआई अपने परिसंपत्तियों का मुद्रीकरण करती है तो इससे टोल संग्रह में लगातार गिरावट आएगी. ऐसा इसलिए होगा क्योंकि जो एजेंसी परियोजनाओं का संचालन और रखरखाव का काम करती है, उसे टैक्स देना पड़ेगा.
प्रधानमंत्री के कार्यालय (पीएमओ) ने इस मामले में हाल में हस्तक्षेप करते हुए कुछ सुझाव दिए हैं. पीएमओ ने सड़क परिवहन और राजमर्ग मंत्रालय से अपने परिचालन के प्रदर्शन में सुधार करने के लिए कहा है.
पीएमओ ने यह भी सुझाव दिया है कि एनएचएआई को अपनी सड़क परिसंपत्ति मुद्रीकरण का आधार टोल-ऑपरेटर-ट्रांसफर (टीओटी) नीलामी के माध्यम से या एक इंफ्रास्ट्रक्चर-निवेश ट्रस्ट (इनवीआईटी) के माध्यम से करना चाहिए. पीएमओ ने बिल्ड-ऑपरेट-ट्रांसफर (बीओटी) मॉडल के तहत नई परियोजनाओं की बोली लगाने को कहा है. इस मॉडल के तहत सरकार पूंजी सहायता प्रदान करने के लिए न्यूनतम प्रतिबद्ध होगी.
नाम ना बताने की शर्त पर एक अधिकारी ने कहा,“ज्यादा टीओटी का मतलब है कि सरकार के टोल राजस्व में गिरावट आएगी. और राजमार्ग निर्माण योजना को जारी रखने के लिए सरकार को ज्यादा खर्च करने की जरूरत है.”
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने हाल में ही कहा था, “एनएचएआई ट्रीपल ए रेटेड संगठन है. और हम सड़क निर्माण करने भर ऋण जुटा सकते हैं. पीएमओ ने जो भी कहा है वो महज सलाह है. यह बात इतनी बड़ी नहीं है जितना मीडिया बना रही है. एनएचएआई हमेशा अपनी ऋण जुटाने के लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल रही है.”
एनएचएआई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा है, “हम हर साल अपना ऋण चुका रहे है. हमने पीएमओ के सुझावों का संज्ञान लिया है ओर हम अपनी ओर से उन्हें प्रतिक्रिया देंगे.”
परियोजना का मुद्रीकरण करने के अलावा एनएचएआई निर्माण के बीओटी मॉडल को दोबारा शुरू करने के बारे में भी सोच रहा है. बीओटी मॉडल के तहत निजी कंपनियां सड़क का निर्माण, संचालन और रखरखाव करती हैं. यह एक तय वक्त के लिए होता है. इसके बाद कंपनियां परिसंपत्तियों को सरकार को हस्तांतरित कर देती हैं.
एचएएम के मामले में केंद्र सरकार परियोजना लागत का 40 फीसदी वहन करती है. ओर बाकी नकद की व्यवस्था डेवलपर करते हैं.
सरकार ने भरतमला परियोजना के तहत होने वाले प्रमुख कार्यों के लिए एनएचएआई को निधि आवंटन किया है. इसके लिए सेंट्रल रोड इंफ्रास्ट्रक्चर फंड (सीआरआईएफ), परमानेंट ब्रिज फीस फंड (पीबीएफएफ) और राष्ट्रीय राजमार्ग कोष (एमएनएचएफ) के मुद्रीकरण से पैसे आएंगे.