नई सरकार की परीक्षा लेगी वित्तीय संस्थानों में पूंजी की समस्या


npa ratio of banks may increase to ten percent in september says reserve bank

 

वित्तीय संस्थान इस समय पूंजी की समस्या से जूझ रहे हैं. दोबारा सत्ता में आई मोदी सरकार अगर अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना चाहती है तो उसे इन संस्थानों में पूंजी की समस्या से निपटना होगा.

कई कारणों के चलते अर्थव्यवस्था इस समय पटरी से उतरती नजर आ रही है. अब जबकि मोदी सरकार एक बार फिर से शपथ ले रही है तब उसके सामने ये एक प्राथमिक चुनौती है. अगर ये स्थिति बनी रहती है तो आर्थिक सुधार की गति धीमी हो सकती है.

सरकारी क्षेत्र की बैंकों और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) को नए सिरे से पूंजी की आवश्यकता होगी. इससे लोन देने की उनकी क्षमता में सुधार होगा. और वे अपनी रुकी हुई देयता को फिर से शुरू कर सकेंगे. इससे पहले उन्होंने बैड लोन के अधिक होने, संपत्ति और देनदारी के मिलान ना होने के चलते लोन देना रोक दिया था.

इन संस्थानों में पूंजी आने और जरूरी तरलता बढ़ने से स्थानीय निवेशकों को प्रोत्साहन भी मिलेगा. उदाहरण के लिए म्यूचुअल फंड और शेयरों में पारिवारिक निवेश को बढ़ावा मिलेगा.

इसके अलावा सरकार को सामाजिक क्षेत्र में खर्च को फिर से शुरू करना होगा, जिससे अर्थव्यवस्था में जान आए. इससे पहले चुनाव के चलते सरकार ने अपने खर्च पर रोक लगा रखी थी. इस दौरान आरबीआई के पास सरकार का रिजर्व एक लाख करोड़ के पार जा चुका है.

इससे पहले देखा जाता रहा है कि चुनाव के दौरान खपत में जबरदस्त बढ़ोतरी होती थी. लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ है. इसलिए सरकारी खर्च में बढ़ोतरी से आर्थिक गतिविधियों को गति मिल सकती है.

विश्लेषकों का मानना है कि नई सरकार का फोकस व्यापार चक्र को फिर से शुरू करने पर होना चाहिए. वित्तीय तंत्र को फिर से चालू करना और निवेशकों का ध्यान आकर्षित करना होगा.

एडेलवेसिस सेक्यूरिटीज ने हाल ही में जारी एक नोट में कहा, “ये अब जरूरी हो गया है निवेश चक्र रुका हुआ है, संपत्ति की गुणवत्ता अब भी चुनौती बनी हुई है, तरलता का मुद्दा बरकरार है और खपत गिरती जा रही है. हमें भरोसा है कि अर्थव्यवस्था को धक्का देने की जरूरत है.”

उधर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक अब भी बैड लोन और बढ़ते घाटे की समस्या से जूझ रहे हैं. क्रेडिट रेटिंग कंपनियों का मानना है कि इन बैंकों को फिर से सुचारू रूप से चलाने के लिए कम से कम 40,000 करोड़ रुपये की पूंजी की आवश्यकता है.

इक्विटी बाजारों का दोहन भी आसान नहीं होने जा रहा. 18 में से 12 सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों ने वित्तीय वर्ष 2019 की चौथी तिमाही में घाटे की बात कही है. इस वजह से इन बैंकों की आधार पूंजी में गिरावट हुई है. जो पूंजी बाजारों से पैसे उठाने में मुश्किल की ओर इशारा है.

मूडी निवेश सेवा की सीनियर क्रेडिट अधिकारी अल्का अंबरासू कहती है कि सरकारी बैंकों को इस समय कम से कम 25 से 40 हजार करोड़ रुपये की आवश्यकता है.

वहीं कुछ विश्लेषकों का मानना है कि सरकार आरबीआई की अतिरिक्त पूंजी को सरकारी बैंकों में डाल सकती है. ऐसा जालान कमिटी की रिपोर्ट में कहा भी जा चुका है. अगर ऐसा हुआ तो सरकार आरबीआई से उसके एक से तीन लाख करोड़ रिजर्व की मांग कर सकती है.

बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच ने एक नोट में कहा, “अब जबकि मोदी सरकार पूर्ण बहुत के साथ सत्ता में आई है तो उसके पास मौका है कि वो जालान कमिटी की सिफारिशों को लागू कर सके.”


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