जस्टिस जोसेफ ने कहा, रफायल सौदे में जांच के लिए सीबीआई स्वतंत्र
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को रफायल सौदे पर पुनर्विचार याचिकाओं को रद्द कर दिया. हालांकि तीन में से एक जज ने कहा कि सीबीआई सौदे में कथित भ्रष्टाचार की जांच के लिए स्वतंत्र है.
बीजेपी मामले में कल आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सरकार के लिए क्लीन चिट के तौर पर पेश कर रही है. कल बीजेपी के कई बड़े नेताओं ने फैसले को इसी रोशनी में पेश करने की कोशिश की.
फैसला देने वाली तीन सदस्यीय बेंच में शामिल जस्टिस केएम जोसेफ ने फैसले में कहा कि याचिका को न्यायपालिका द्वारा खारिज किए जाने का ये मतलब नहीं है कि जांच एजेंसियों को सौदे में कथित अनियमितताओं की जांच से रोका जा रहा है.
साल 2016 में उत्तराखंड हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस रहते हुए जस्टिस जोसेफ ने केंद्र के सुझाव के बाद भी राष्ट्रपति शासन लगाने से इनकार कर दिया था. जस्टिस जोसेफ को 2018 में सुप्रीम कोर्ट में पद्दोन्नति से पहले भी काफी इंतजार करना पड़ा था.
जस्टिस जोसेफ ने मुख्य फैसले से सहमति जताई है. लेकिन अपने अलग फैसले में उन्होंने सीबीआई जांच की बात कहते हुए ये बातें लिखीं–
– 2014 में सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय बेंच ने संज्ञेय अपराध की शिकायत पर एफआईआर दर्ज करना अनिवार्य घोषित किया था.
– ये जांच कोर्ट के लिए उचित नहीं है और ना ही ये कोर्ट के अधिकारक्षेत्र में आता है. एक पुलिस अधिकारी ही ये काम कर सकता है.
– 2014 के फैसले का हवाला देते हुए जस्टिस जोसेफ ने कहा कि शुरुआती जांच में जांच एजेंसी का काम जानकारी की सत्यता को परखना नहीं बल्कि ये तय करना है कि ये एक संज्ञेय अपराध है या नहीं.
– अगर जानकारी से पता नहीं चलता है कि ये एक संज्ञेय अपराध है तो एजेंसी ये पता लगाने के लिए शुरुआती जांच कर सकती है कि संज्ञेय अपराध हुआ है या नहीं.
– मामले में साफ है कि याचिकाकर्ताओं द्वारा की गई शिकायत एक संज्ञेय अपराध है.
– अगर शुरुआती जांच के बाद मामले को बंद किया जाता है तो सबसे पहले शिकायतकर्ता को लिखित में ये सूचित किया जाएगा, जिसमें एक सप्ताह से अधिक की देरी नहीं होनी चाहिए.
ऐसे में ये साफ है कि मामला एक संज्ञेय अपराध का है, जिनमें शिकायत पर सीबीआई जांच कर सकती है.
बीते साल सुप्रीम कोर्ट ने 14 दिसंबर, 2018 को 58,000 करोड़ रुपये के लड़ाकू विमानों की खरीद से सबंधित इस सौदे में कथित अनियमिततओं की जांच के लिए दायर याचिकायें खारिज कर दी थीं.
इस फैसले में कोर्ट ने कहा था कि 36 राफेल लड़ाकू विमान प्राप्त करने के निर्णय लेने की प्रक्रिया पर संदेह करने के लिए कोई ठोस आधार मौजूद नहीं है.