नागरिकता विधेयक संशोधन के विरोध में स्मृति चिह्न लौटाएंगे परिजन
असम आंदोलन के दौरान जान गंवाने वाले लोगों के परिजनों ने नागरिकता विधेयक के विरोध में स्मृति चिह्न लौटाने का फैसला किया है. बीजेपी की सर्वानंद सोनोवाल सरकार ने 10 दिसंबर 2016 को हर दिवंगत व्यक्ति के परिवार को पांच लाख रुपये के साथ स्मृति चिह्न दिया था.
‘एसपीएसपी’ के सदस्य ‘ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन’ (आसू) के मुख्यालय ‘शहीद न्यास’ में यह फैसला किया है. ‘एसपीएसपी’ असम आंदोलन के परिजनों का संगठन है.
असम सरकार की ओर से 855 लोगों को मरणोपरांत दिए गए स्मृति चिन्ह को हाथों में थामे परिजनों ने नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2019 को लागू करने के केन्द्र के कदम के विरोध में स्मृति चिह्न लौटाने का फैसला किया है.
संगठन के प्रमुख राजन डेका ने संवाददाताओं से कहा, “नागरिकता विधेयक लोकसभा में पारित हो गया है. यह हम सबके लिए बहुत शर्म की बात है. अगर विधेयक कानून बनता है तो असम आंदोलन के 800 से अधिक शहीदों का बलिदान महत्वहीन हो जाएगा.”
डेका ने कहा, “अगर 1971 के बाद असम में घुसने वाले हिन्दू बांग्लादेशियों को भारत में नागरिकता दी जाती है तो उनका बलिदान महत्वहीन हो जाएगा. ये स्मृति चिह्न हमारे लिए एक समय सम्मान की बात थी लेकिन अब ये महत्वहीन हैं.”
उन्होंने कहा कि असम आंदोलन में प्राण न्यौछावर करने वाले लोगों के परिजन अपने-अपने क्षेत्र के जिला उपायुक्तों को स्मृति चिह्न लौटाएंगे.