निजी शैक्षणिक संस्थानों में भी गरीब सामान्य वर्ग को 10 फ़ीसदी आरक्षण का प्रस्ताव
सरकार ने सरकारी शैक्षणिक संस्थानों के साथ-साथ निजी शिक्षण संस्थानों में भी गरीब सामान्य वर्ग को 10 फ़ीसदी आरक्षण देने की बात कही है. फिर चाहे ये निजी शैक्षणिक संस्थान सरकार की ओर से वित्त पोषित हों या गैर वित्त पोषित.
यह बात लोकसभा में पेश किए गए विधेयक के मकसद और वजहों को स्पष्ट करते हुए कही गई है.
इससे पहले गरीब सामान्य वर्ग को शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 10 फ़ीसदी आरक्षण देने के लिए संविधान संशोधन विधेयक लोकसभा में पेश किया गया.
यह संविधान का 124 वां संशोधन होगा. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सात जनवरी को विधेयक को मंजूरी दी थी.
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केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने सवर्णों को आरक्षण देने के फैसले के मकसद को स्पष्ट करते हुए कहा है कि यह कदम संविधान के अनुच्छेद 46 के मकसद को पूरा करने के लिए उठाया गया है.
संविधान के अनुच्छेद 46 के मुताबिक राज्य का कर्तव्य है कि वे शैक्षणिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हुए वर्ग के हितों का ख्याल रखें. खासतौर पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों का. इन वर्गों को सामाजिक अन्याय और हर प्रकार के शोषण से सुरक्षित रखना राज्य का कर्तव्य है.
थावरचंद गहलोत के बयान के मुताबिक चूंकि आर्थिक रूप से पिछड़े हुए तबकों को आरक्षण नहीं मिल रहा है इसलिए अनुच्छेद 46 के मकसद की पूर्ति नहीं हो पा रही है. इसलिए इस मकसद को पूरा करने और आर्थिक रूप से पिछड़े हुए तबकों को उचित शैक्षणिक और आर्थिक अवसर मुहैया कराने के लिए यह विधेयक सरकार ने पेश किया है.