श्रम बल में ग्रामीण महिलाओं की घटी भागीदारी
भारत में कामकाजी महिलाओं की संख्या लगातार कम हो रही है. आंकड़े बताते हैं कि साल 2005 से 2011 के बीच देश में कामकाजी महिलाओं की संख्या में 7 फीसदी की कमी आई है.
इंडिया स्पेंड की खबर के मुताबिक, नेशनल सैंपल सर्वे की रिपोर्ट बताती है कि देश में साल 1990 के बाद हुए विकास से महिलाओं में शिक्षा और स्वास्थ्य का स्तर बेहतर हुआ है. लेकिन, साल 2005 में जहां कुल श्रम बल में महिलाओं की हिस्सेदारी 33 फीसदी थी, वह साल 2011-12 में घटकर 25 फीसदी ही रह गई.
बीते वर्षों में कुल श्रम बल में महिलाओं की संख्या में गिरावट दर्ज की गई. शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं की संख्या श्रम बल में घटी है. लेकिन आंकड़े बताते हैं कि श्रम बल से ग्रामीण महिलाओं की संख्या शहरी महिलाओं की तुलना में अधिक तेजी से कम हुई है.
भारत में कामकाजी महिलाओं की संख्या में कमी का अंदाजा इस तथ्य लगाया जा सकता है कि हमारे पड़ोसी देशों में यह आंकड़े कहीं बेहतर है. बांग्लादेश में 29 फीसदी, नेपाल में 52 फीसदी और श्रीलंका में 34 फीसदी महिलाएं कुल श्रम बल में शामिल हैं.
नौकरी के कम होते अवसर
भारत की बात करें तो अब ग्रामीण भारत में महिलाएं अपने पारिवारिक खेतों में काम करने की जगह संगठित क्षेत्र की ओर अधिक रुख कर रही हैं. वे पहले से ज्यादा शिक्षित हैं और मनरेगा के तहत उनके पास असंगठित क्षेत्र की तुलना में बेहतर कमाई के विकल्प भी मौजूद हैं.
हालांकि भारत की जनसंख्या का एक बहुत बड़ा हिस्सा आज भी असंगठित क्षेत्रों में काम कर रहा है. ऐसे में ग्रामीण भारत में संगठित क्षेत्रों में काम करने के बेहद ही कम विकल्प मौजूद हैं.
मनरेगा जैसे सरकारी रोजगार कार्यक्रम की मजदूरों में काफी मांग है, लेकिन इसके तहत भी सालाना केवल 100 दिनों तक रोजगार दिया जाता है. मनरेगा के अलावा जो विकल्प मौजूद हैं, उनमें अधिकतर काम पुरूषों को ही दिया जाता है. अधिकतर लड़कियां 12वीं के बाद अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाती हैं, तो केवल कुछ डिग्री धारक महिलाएं ही खेती, मजदूरी के अलावा दूसरे काम कर पाती हैं.
असंगठित क्षेत्र में रोजगार न होना, श्रम बल में ग्रामीण महिलाओं की लगातार कम होती भागीदारी के पीछे सबसे बड़ा कारण है. इसके अलावा खेती किसानी में भी रोजगार लगातार घटता जा रहा है.
श्रम बल भागीदारी दर (एलएफपीआर) की बात करें तो एनएसएस के आंकड़ों के मुताबिक प्रति हजार लोगों पर महिलाओं की संख्या में लगातार गिरावट दर्ज की गई है. शहरी इलाकों में साल 1993 में प्रति हजार लोगों में 165 महिलाएं थीं. जो साल 2011 में घटकर 155 हो गईं. वहीं ग्रामीण इलाकों में 1993-2011 के बीच एलएफपीआर घटकर 330 से 253 हो गया.
खेती किसानी में रोजगार के कम होते मौके इसके पीछे काफी हद तक जिम्मेदार हैं.