आय में कमी से मांग प्रभावित, सरकार की नीतियां जिम्मेदार: एसबीआई अध्ययन
एसबीआई के अध्ययन में सरकार की नीतियों को मजदूरों की आय में कमी के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है, जिसकी वजह से मांग में कमी आई है. अध्ययन में कहा गया है कि देश में मौजूदा नरमी संयुक्त रूप से संरचनात्मक और चक्रीय दोनों कारकों का नतीजा है. इसके अलावा वैश्विक अनिश्चितताओं का भी इस पर असर है.
उच्च आवृत्ति वाले संकेतकों जैसे औद्योगिकी में हल्की वृद्धि तथा वाहनों की बिक्री के ऐतिहासिक रूप से नीचे पहुंचने के साथ देश की अर्थव्यवस्था में नरमी के संकेत हैं.
एसबीआई ने अपनी शोध रिपोर्ट ‘इकोरैप’ में कहा, ‘‘मौजूदा घरेलू नरमी का कारण वैश्विक अनिश्चितताओं के अलावा ऐसा लगता है कि संरचनात्मक और चक्रीय दोनों कारकों की वजह से है. ’’
इसमें कहा गया है कि स्पष्ट तौर पर कई संरचनातमक कारक हैं जो मौजूदा खपत को बाधित कर रहे हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक हाल के समय में मजदूरी में उल्लेखनीय गिरावट (ग्रामीण और शहरी मजदूरी दोनों) से घरेलू बचत कम हुई है. यह वृहत आर्थिक संतुलन के लिए सोच-समझकर सरकार की नीति का नतीजा है. इससे वास्तविक प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि धीमी हुई और परिणामस्वरूप मांग प्रभावित हुई है.
नई परियोजनाओं में निवेश के मामले में निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी 2007-14 के दौरान 50 प्रतिशत से घटकर 2015-19 में 30 प्रतिशत पर आ गयी.
रिपोर्ट के अनुसार मौजूदा क्षमता उपयोग (76.1 प्रतिशत) में संभावित वृद्धि तभी हो सकती है जब बैंक कर्ज की मांग में वृद्धि के लिए क्षेत्र विशेष से जुड़े मुद्दों का एक साथ समाधान हो.
वाहन क्षेत्र में नरमी के बारे में इसमें कहा गया है कि यह केवल भारत तक सीमित नहीं है बल्कि यह विभिन्न देशों में इसे महसूस किया जा रहा है. चीन भी वाहनों की बिक्री में नरमी की मार झेल रहा है.
अमेरिका में लंबे समय की सुस्ती के बाद जुलाई में वाहनों की बिक्री के आंकड़ों में सुधार हुआ है. हालांकि इसका कारण तुलनात्मक आधार कमजोर होना है.
जर्मनी में भी वाहन उत्पादन में साल की पहली छमाही में 12 प्रतिशत की गिरावट आई.
इकोरैप के अनुसार वाहन क्षेत्र में तीन करोड़ लोग कार्यरत हैं. इनमें से 50 प्रतिशत ठेके पर हो सकते हैं. इसके आधार पर वाहन क्षेत्र की नरमी की गंभीरता को समझा जा सकता है.
वैश्विक अर्थव्यवस्था के बारे में रिपोर्ट में कहा गया है कि यह फिलहाल अस्थिर बनी हुई है.