PMEAC ने जीडीपी को लेकर अरविंद सुब्रमण्यम के दावों को खारिज किया


nsso survey raise fresh questions on GDP calculation

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आर्थिक सलाहकार परिषद (पीएमइएसी) ने पूर्व आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम द्वारा अपने शोध पत्र में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) को लेकर किए गए दावों को खारिज कर दिया है.

पीएमइएसी ने कहा है कि सुब्रमण्यम का जीडीपी के संबंध में निष्कर्ष तकनीकी तौर पर गलत है. इसने आधिकारिक सांख्यिकीविदों और अर्थशास्त्रियों की समर्पित टीम के मनोबल को हतोत्साहित करने का काम किया है. पीएमइएसी के अध्यक्ष बिबेक देबरॉय ने अंग्रेजी अखबार मिंट को दिए साक्षात्कार में कहा कि सुब्रमण्यम को भारत की सांख्यिकी प्रणाली की विश्वसनीयता पर सवाल नहीं उठाना चाहिए था.

इससे पहले पूर्व आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने अपने शोध पत्र में कहा था कि साल 2011-12 और 2016-17 के बीच भारत की जीडीपी के आंकलन को बढ़ाकर दिखाया गया था. ये वास्तविक दर से करीब 2.5 फीसदी ज्यादा था.

सुब्रमण्यम ने हाल में ही हार्वर्ड विश्वविद्यालय में अपना शोध पत्र पढ़ा था. उन्होंने शोध पत्र में बताया कि आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2011-12 और 2016-17 दौरान देश की जीडीपी दर 7 फीसदी बताई गई लेकिन सही वृद्धि दर करीब 4.5 फीसदी के इर्द-गिर्द थी.

बिबेक देबरॉय ने कहा, “सुब्रमण्यम महज एक अर्थशास्त्री नहीं हैं. वो पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीइए) हैं. इसलिए उनकी कही बातों को किसी अन्य अर्थशास्त्री के मुकाबले ज्यादा तवज्जो दी जाती है, ज्यादा गंभीर माना जाता है. मेरे हिसाब से एक पूर्व सीइए को अपने विचार या काम से संबंधित कागज को सार्वजनिक करने से पहले थोड़ा सावधान रहना चाहिए.”

उन्होंने कहा, “इससे देश को काफी नुकसान पहुंचता है. मेरे हिसाब से किसी भी पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार, जिसमें सुब्रमण्यम भी शामिल हैं, को ज्यादा से ज्यादा सावधान रहने की जरुरत है.”

उन्होंने कहा, “ जिस राष्ट्रीय लेखा प्रणाली के आधार पर जीडीपी की दर तय की गई, वह 2008 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा किए गए बदलाव की देन था. जिस समिति ने इस प्रणाली की जांच की थी उसमें राष्ट्र आय लेखा के विशेषज्ञ शमिल थे. उन्होंने यूपीए (संयुक्त प्रगतशील गठबंधन) के कार्यकाल में एक नई  राष्ट्रीय लेखा प्रणाली के लिए सुझाव दिया था. जनवरी 2015 में एनडीए सरकार ने सिर्फ इस नई प्रणाली को लागू किया था.”

देबरॉय  ने यह भी कहा कि जीडीपी के अनुमान में इस तरह के बदलाव अन्य देशों में भी हुए हैं. आर्थिक सहयोग तथा विकास संगठन (ओईसीडी) के सभी देशों ने 2013 से 2015 के बीच जीडीपी गणना की अपनी प्रणाली में बदलाव किए हैं. इस बदलाव की वजह से 2013 में अमेरिका की जीडीपी 2.5 फीसदी बढ़ाई गई. ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि 2008 के संयुक्त राष्ट्र की राष्ट्रीय लेखा प्रणाली में बौद्धिक सम्पदा के मूल्यों को भी मापने की कोशिश की गई थी. इसके तहत अमेरिका ने वर्ष 1929 से हॉलीवुड के योगदान का आंकलन करना शुरू किया. इसी प्रकार सभी देशों ने कई प्रकार के रिवीजन किए.”

हालांकि साक्षात्कार में बिबेक देबरॉय ने माना है कि इस समय देश की अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी है. उन्होंने कहा कि इसकी शुरुआत कई वर्षों पहले हो चुकी थी जब सुब्रमण्यम भी सरकार का हिस्सा थे.
उन्होंने कहा कि सांख्यिकीय प्रणाली की आलोचना करना एक बात है, लेकिन पूरी भारतीय सांख्यिकीय प्रणाली पर सवाल उठाना एक पूर्व सीइए के लिए अनावश्यक है.


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