असहमति के निर्णय को चुनाव आयोग के फैसले में शामिल नहीं किया जायेगा
निर्वाचन आयोग ने चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन की शिकायतों के निस्तारण के फैसले में किसी चुनाव आयुक्त की असहमति के निर्णय को शामिल नहीं करने का औपचारिक आदेश जारी कर दिया है.
आयोग द्वारा चार जून को जारी आदेश में स्पष्ट किया गया है कि आयोग की पूर्ण बैठक में किए गए फैसले में सिर्फ बहुमत या सर्वानुमति के फैसले को ही शामिल किया जायेगा. उल्लेखनीय है कि लोकसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ आचार संहिता के उल्लंघन के मामले में चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने अपने असहमति के फैसले को आयोग की पूर्ण बैठक के फैसले में शामिल किये जाने की मांग की थी.
असहमति के निर्णय को आयोग के फैसले में शामिल करने की मांग पर मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा की अध्यक्षता में 21 मई को हुई आयोग की पूर्ण बैठक में इस मांग को खारिज कर दिया था.
लवासा का मत था कि आचार संहिता के उल्लंघन के मामले में असहमति के निर्णय को भी न्यायालय के फैसलों की तर्ज पर आयोग के फैसले में शामिल किया जाना चाहिए, जिससे असहमति का मत भी सार्वजनिक हो सके. उल्लेखनीय है कि न्यायिक फैसलों में अदालत की पीठ के सभी न्यायाधीशों के फैसलों को शामिल किया जाता है.
पूर्ण बैठक में अरोड़ा और चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा का मत था कि आचार संहिता के उल्लंघन के मामलों में पारित फैसले कार्यकारी अथवा प्रशासनिक प्रकृति के होते हैं. इनकी तुलना न्यायिक फैसलों से नहीं की जा सकती है. इसलिये पूर्व स्थापित नियमों के मुताबिक आयोग के फैसले में सिर्फ बहुमत के फैसले का ही जिक्र किया जाए.
इस मामले में आदेश द्वारा जारी आदेश के बारे में स्थिति को स्पष्ट करते हुए आयोग के एक अधिकारी ने बताया कि असहमति के फैसले को सिर्फ प्रक्रिया का हिस्सा मानते हुए रिकॉर्ड में दर्ज किया जायेगा. कोई भी नागरिक इसे सूचना के अधिकार कानून के तहत हासिल कर सकता है.
उल्लेखनीय है कि लोकसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ आचार संहिता के उल्लंघन की 11 शिकायतों में से आयोग ने सभी शिकायतों को खारिज कर मोदी को क्लीन चिट दी थी. इनमें से पांच मामलों में लवासा ने असहमति जताई थी.