आगे भी जारी रहेगी भारतीय अर्थव्यवस्था में सुस्ती: गोल्डमैन सैक्स


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गोल्डमैन सैक्स के विश्लेषकों के मुताबिक मंदी की ओर जाती भारतीय अर्थव्यस्था को उभारने के लिए सरकार की कोशिशों के बावजूद अर्थव्यस्था में आगे आने वाले महीनों में सुस्ती जारी रहेगी.

कंपनी के एशिया-पैसिफिक क्षेत्र के विशेषज्ञ अर्थशास्त्री एंड्रयू टिल्टन के साथ प्राची मिश्रा और साक्षी गोयनका द्वारा लिखी गई रिपोर्ट के मुताबिक आगे आने वाले महीनों में भारतीय अर्थव्यवस्था में सुस्ती बनी रहेगी.

बिजनेस स्टैंडर्ड की खबर के मुताबिक रिपोर्ट ‘इंडिया इकोनॉमिक स्लोडाउन’ नाम से प्रकाशित हुई है.

रिपोर्ट के मुताबिक “आर्थिक सुस्ती की शुरुआत जनवरी 2018 में हुई, आईएलएंडएफएस में परेशानी इस सुस्ती का ही नतीजा था, जिसकी नींव 2017-18 की तीसरी तिमाही में जीएसटी की शुरुआत के साथ ही डाल दी गई थी. बीते 18 महीनों से यह सुस्ती जारी है और 2006 के बाद यह सबसे लंबी अवधि है.”

गोल्डमैन सैक्स का मानना है कि ऑटोमोबाइल क्षेत्र में बिक्री में गिरावट सुस्ती के पीछे जिम्मेदार अकेला कारण नहीं है. जबकि हवाई यात्रियों की संख्या, कर संग्रह और उपभोक्ता वस्तुओं की बिक्री भी अर्थव्यवस्था में सुस्ती के पीछे काफी हद तक जिम्मेदार हैं.

“सुस्ती के पीछे ऑटोमोबाइल क्षेत्र 17 फीसदी तक जिम्मेदार है. जबकि बैंक कृषि कर्ज, वाहनों की बिक्री, ग्रामीण क्षेत्र में मेहनताना, तेल की खपत, कृषि निर्यात, खाद की बिक्री, रेल/हवाई यात्रियों की संख्या, घर के लिए कर्ज और इलेक्ट्रॉनिक निर्यात इसके पीछे 36 फीसदी तक जिम्मेदार हैं.”

कंपनी के मुताबिक खाद की बिक्री और रेल यात्री परिवहन में गिरावट अकेले दो ऐसे संकेतक हैं, जिनमें बीते साल के आखिर में गिरावट शुरू हुई. वहीं कृषि कर्ज, ग्रामीण क्षेत्र में मेहनताना, इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों का निर्यात जैसे संकेतक 2017 में ही गिरने शुरू हो गए थे.

उन्होंने पाया कि “सुस्ती के पीछे 2017 में लागू किया गया माल एंव सेवा कर भी जिम्मेदार हो सकता है. नकदी का संकट जीएसटी रिफंड की व्यवस्था में परेशानियों का ही परिणाम था. जिसकी वजह से एमएसएमई क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित हुआ. बैंक कर्जे का साल दर साल विकास 2018 के आखिर में कम होना शुरु हुआ. जो खुद सुस्ती का लक्षण है, इसके पीछे जिम्मेदार कारण नहीं.”

निवेश में कमी, फाइनेंसिंग की नियमों सख्ती, उपभोक्ता विश्वास में गिरावट, मूल ब्याज दर में बढ़ोतरी, सरकार के खर्चे और मानसून इसके पीछे जिम्मेदार अन्य कारणों में से एक हैं.

फरवरी 2019 के बाद रिजर्व बैंक ने रेपो रेट को 110 बेसिस अंक कम किया है.

विश्लेषकों ने कहा कि इस बार की तुलना में पहले रही मंदी के दौरों में भारत में नीतियों को आसान बनाने के प्रक्रिया ज्यादा व्यापाक स्तर पर रही थी. “अर्थव्यवस्था में सुस्ती और चुनाव वर्ष होने के बाद भी नीति निर्माओं ने नीतियों को सरल या आसान बनाने पर अधिक जोर नहीं दिया. राजकोषीय घाटे के आंकड़ों को देखते हुए भी सरकार ने वित्त वर्ष 2020 के लिए अर्थव्यवस्था को अतिरिक्त प्रोत्साहन देने पर विचार नहीं किया.”


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