सवर्ण आरक्षण बिल पर सरकार का झूठ
सामान्य वर्ग के गरीबों को आरक्षण के लिए केन्द्र सरकार जिस सिन्हो कमीशन के सुझावों का हवाला देती रही है, उसमें गरीबों के लिए कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने की बात तो है लेकिन आरक्षण की कोई चर्चा नहीं है.
सिन्हो रिपोर्ट के मुताबिक, “आर्थिक आधार किसी समुदाय के पिछड़ेपन का आधार नहीं हो सकता है. राज्य गरीबों की पहचान केवल कल्याणकारी योजनाओं के लिए ही कर सकते हैं.”
राज्यसभा में 124वां संविधान संशोधन विधेयक नौ जनवरी को पास किया गया है. बिल के पेश होने से पहले केन्द्र सरकार ने कहा था कि सिन्हो कमीशन ने आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग को आरक्षण देने का सुझाव दिया है.
यूपीए के शासनकाल में मेजर जनरल(सेवानिवृत्त) एसआर सिन्हो की अध्यक्षता में तीन सदस्यों वाले कमीशन का गठन किया गया था. कमीशन ने जुलाई 2010 में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी.
रिपोर्ट के मुताबिक, “ कमीशन संवैधानिक और कानूनी पक्ष के आधार पर मानता है कि पिछड़े वर्ग को रोजगार और शिक्षण संस्थानों में दाखिले के लिए आर्थिक आधार पर आरक्षण प्रदान नहीं किया जा सकता है. सरकार केवल कल्याणकारी योजनाओं के लिए ही आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को चिन्हित कर सकती है.
सिन्हो कमीशन की रिपोर्ट में कहा गया है कि आर्थिक रूप से कमजोर तबकों(ईडब्लूएस) को आरक्षण देने के लिए दो महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर विचार करना आवश्यक है. पहला, आर्थिक पिछड़ेपन के साथ सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ापन जरूरी है. दूसरा, आरक्षण में 50 फीसदी के कोटे से ऊपर जाने के लिए संविधान संशोधन या सुप्रीम कोर्ट की ओर से अनुमति जरूरी होगी.
अंतिम वाक्य में इसे दोहराया गया है. “भारतीय संदर्भ में आरक्षण सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए एक सकारात्मक कदम है.”
कमीशन ने सामान्य वर्ग के आर्थिक कमजोर 5.85 करोड़ लोगों के लिए 10,000 करोड़ रुपये राहत पैकेज जारी करने का सुझाव दिया था.