केंद्र सरकार ने नहीं चुकाया FCI का 69 हजार करोड़ से ज्यादा का सब्सिडी बिल


government underpaid fci for food subsidy bill

 

केंद्र सरकार ने बीते वित्त वर्ष में बड़े पैमाने पर खाद्य सब्सिडी का बकाया नहीं भरा है. लाइव मिंट में छपी एक खबर के मुताबिक सरकार ने वित्त वर्ष 2018-19 में भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) को सब्सिडी के रूप में दिए जाने वाले 69,394 करोड़ रुपये नहीं दिए हैं.

केंद्र सरकार द्वारा दी जाने वाली प्रमुख सब्सिडी में खाद्य, उर्वरक, पेट्रोलियम आदि शामिल हैं. लेखा महानियंत्रक (सीजीए) के मुताबिक साल 2018-19 के दौरान इनका 74 फीसदी ही चुकाया गया है. जबकि इससे पहले के साल में इनका 83 फीसदी हिस्सा चुकाया गया था.

खर्च ना मिलने के चलते एफसीआई सामने फंड का संकट खड़ा हो गया है. इसके लिए उसे अब बाहरी स्रोत से बड़े पैमाने पर फंड उठाने की जरूरत होगी. एफसीआई कैश क्रेडिट या बैंक से कम अवधि के लोन ले सकता है. या फिर बॉन्ड जारी कर बाजार से धन उठा सकता है, जिस पर उसे ब्याज देना होगा.

देश में कैश क्रेडिट की सुविधा 63 बैंकों का एक कंसोर्टियम देता है. जिसकी अगुआई एसबीआई करता है. और केंद्र सरकार इसकी गारंटी लेती है.

एफसीआई की स्थापना साल 1964 में हुई थी. ये किसानों से सीधे उनकी फसल एमएसपी पर खरीदता है. पीडीएस का प्रबंधन भी एफसीआई ही करता है. इसके लिए ये अनाज का बफर स्टॉक भी रखता है.

एफसीआई किसानों से जिस कीमत पर अनाज खरीदता है, उससे बहुत कम कीमत में ये उसे गरीबों को उपलब्ध कराता है. ऐसा पीडीएस यानी जन वितरण प्रणाली के माध्यम से किया जाता है. अब खरीद और बिक्री के बीच में जो अंतर आता है, उससे एफसीआई को घाटा होता है. सरकार सब्सिडी के माध्यम से इस घाटे को पूरा करती है.

इससे पहले 2017 में कैग की ऑडिट रिपोर्ट से साफ हो चुका है कि एफसीआई बाहर से जो धन लेती है उस पर इसे काफी ज्यादा ब्याज चुकाना पड़ता है. ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि सरकार कभी समय पर सब्सिडी नहीं चुकाती है.

वित्त मंत्रालय अपनी प्राथमिकताओं के निर्धारण के चलते एफसीआई को धन देने में अकसर चूक जाता है. ऑडिट रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया था. कि केंद्र सरकार के लिए बड़े घाटे का सौदा साबित होता है. इस तरह से सरकार ब्याज के जाल में फंस जाती है, और उसे कई जगहों पर चक्रों में ब्याज चुकाना पड़ता है.

इस साल जनवरी में आई कैग की एक दूसरी रिपोर्ट में बजट से अलग साधनों से उधार लेने के चलते भी मोदी सरकार की आलोचना की जा चुकी है. कैग का कहना था कि इससे राजस्व घाटे में इजाफा होता है.

रिपोर्ट में कहा गया था कि सरकार को चाहिए कि वो बजट से इतर धन इकट्ठा करने के लिए एक नीति बनाए. जिसमें इस तरह से फंड इकट्ठा करने के लिए निश्चित प्रावधान हों.

इससे पहले आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग भी कह चुके हैं कि सब्सिडी को अगले साल के लिए टाल देना हल नहीं है.


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