इलेक्टोरल बॉन्ड पर केंद्र ने जनता की राय लेना जरूरी नहीं समझा
2017 में राजनीतिक पार्टियों की फंडिंग के तरीके में बड़ा बदलाव करते हुए मोदी सरकार इलेक्टोरल बॉन्ड की व्यवस्था लाई थी. आज द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित खबर के मुताबिक इलेक्टोरल बॉन्ड पर केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय और राज्य की राजनीतिक पार्टियों और आम जन सामान्य से उनकी राय लेना जरूरी नहीं समझा.
नेशनल कैंपेन फॉर पीपुल्स राइट टु इंफोर्मेशन की अंजली भारद्वाज द्वारा आरटीआई के तहत प्राप्त की गई सूचना के हवाले से अखबार लिखता है कि 21 अगस्त 2017 को संयुक्त सचिव प्रशांत गोयल ने लिखा- आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने आज इलेक्टोरल बॉन्ड की व्यवस्था पर प्रेजेंटेशन दी.’
इस नोट में पांच प्रमुख प्वाइंट दिए गए थे. जिसमें बॉन्ड स्कीम के ढांचे और इसकी पूरी व्यवस्था पर प्रस्ताव पेश किया गया था.
नोट के पांचवे प्वाइंट में लिखा था कि ‘निम्नलिखित बिंदुओं पर राय ली जा सकती है. 1. इस स्कीम पर अन्य राजनीतिक दलों की राय ली जाए या नहीं. अगर हां, तो क्या स्कीम सभी राजनीतिक दलों को भेज कर 15 दिनों के भीतर अपनी राय भेजने के लिए कहा जाए. 2. क्या वित्त मंत्रालय की वेबसाइट पर स्कीम का ड्राफ्ट सार्वजनिक करके आम जन की राय ली जाए.’
हालांकि 21 अगस्त के नोट में रखी गई इन अहम बिंदुओं को दरकिनार करते हुए प्रशांत गोयल ने 22 अगस्त को एक अन्य नोट लिखा. इस नोट में राजनीतिक पार्टियों और लोगों की राय लेने की बात शामिल नहीं थी और सीधे लिखा था कि ‘माननीय वित्त मंत्री ऊपर दिए गए स्कीम के प्रस्तावित ड्राफ्ट को मंजूरी दे सकते हैं.’
भारद्वाज ने सरकार के इस रवैये पर सवाल उठाए और कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड पर आम लोगों की राय ना लेना राजनीतिक इच्छाशक्ति में कमी को दिखाता है. उन्होंने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड को लागू करने का फैसला नियमों को ताक पर रख कर ‘छल से लिया गया.’