कुलभूषण जाधव से पहले ICJ के वे पांच मामले जिनमें भारत एक पक्ष था
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अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) भारतीय नागरिक कुलभूषण सुधीर जाधव के मामले में अपना फैसला सुनाने जा रहा है. इस मामले में भारत-पाकिस्तान दोनों पक्षों की ओर से दलीलें पूरी हो चुकी है. पाकिस्तान ने कुलभूषण को जासूसी के आरोप में मौत की सजा सुनाई थी, जिसे भारत ने आईसीजे में चुनौती दी है. आईसीजे के फैसले पर पूरी दुनिया की नजरें लगी हुई हैं.
भारत इससे पहले भी कई मामलों में आईसीजे का रुख कर चुका है और कई मामलों में वो दूसरा पक्ष रहा है. अंग्रेजी वेबसाइट फैक्टली ने ऐसे मामलों पर प्रकाश डाला है.
अगर इस मामले को छोड़ दें तो भारत पहले भी पांच बार आईसीजे का रुख कर चुका है. इसमें से तीन मामलों में तो दूसरा पक्ष पाकिस्तान ही था.
पुर्तगाल बनाम भारत, 1955
आजादी के बाद साल 1955 में पुर्तगाल, भारत को अंतरराष्ट्रीय कोर्ट खींचकर ले गया था. पुर्तगाल भारतीय क्षेत्र में अपने लिए रास्ता चाहता था. दरअसल उस समय तक कुछ भारतीय क्षेत्रों में पुर्तगाल का कब्जा था. पुर्तगाल अपने कब्जे वाले क्षेत्र दमन और दादर नागर-हवेली के बीच आवागमन के लिए भारतीय क्षेत्र में अपने लिए रास्ता चाहता था.
भारत ने इसका विरोध किया. भारत की ओर से कहा गया कि इन क्षेत्रों में पुर्तगाल की स्वीकार्यता ही नहीं है. भारत ने दावा किया कि रास्ता बंद किया जाना बहुत जरूरी था, क्योंकि इससे इन क्षेत्रों में तनाव का माहौल पनप रहा था.
इस मामले में आईसीजे ने पाया कि भारत की ओर से कुछ भी गलत नहीं किया गया है. कोर्ट ने कहा कि भारत ने अपने दायित्वों के विपरीत काम नहीं किया है. इस तरह से ये फैसला भारत के पक्ष में रहा.
भारत बनाम पाकिस्तान, 1971
भारत अंतरराष्ट्रीय नागर विमानन संगठन यानि कि आईसीएओ से जुड़े एक मामले में आईसीजे पहुंचा. इस मामले में भारत का दावा था कि आईसीएओ भारत-पाकिस्तान के बीच उड्डयन विवाद पर कोई फैसला सुनाने का अधिकार नहीं रखता.भारत का कहना था कि दोनों देशों के बीच कोई मामला 1966 के विशेष शासन के नियमों के तहत सुलझाया जाएगा.
इस मामले का निर्णय 1972 में आया. आईसीजे ने पाकिस्तान के उस तर्क को खारिज कर दिया जिसमें उसने इस मामले को आईसीजे के क्षेत्र से बाहर बताया था. लेकिन साथ ही उसने आईसीएओ को मामले में हस्ताक्षेप के लिए वैध संस्था माना.
भारत बनाम पाकिस्तान, 1973
1973 में युद्ध बंदियों के मुद्दे पर पाकिस्तान आईसीजे जा पहुंचा. पाकिस्तान का आरोप था कि भारत ने उसके 195 युद्ध बंदियों को मौत की सजा दी है, जो एक नरसंहार है.
इसके बाद इस मामले में पाकिस्तान ने आईसीजे को खुद ही सूचित किया कि दोनों देशों ने मिलकर इसे सुलझा लिया है. साथ ही पाकिस्तान ने कोर्ट से कहा कि अब दोनों देश इस मामले पर आगे कार्रवाई नहीं चाहते हैं.
भारत बनाम पाकिस्तान, 1999
इस बार पाकिस्तान ने भारत पर उसके एक विमान को बर्बाद करने का आरोप लगाया और आईसीजे से कार्रवाई की मांग की. पाकिस्तान का दावा था कि आईसीजे इस मामले में सुनवाई कर सकता था, जबकि भारत इसे आईसीजे के न्यायिक क्षेत्र बाहर बता रहा था.
इस विवाद का फैसला भारत के पक्ष में रहा. आईसीजे ने साफ तौर पर कह दिया कि शिमला समझौते के तहत इस तरह के विवाद में वह सुनवाई नहीं कर सकता. कोर्ट ने दोनों देशों से कहा कि वे मिलकर इस मामले को शांतिपूर्वक सुलझा लें.
मार्शल आईलैंड बनाम भारत, 2014
रिपब्लिक ऑफ मार्शल आईलैंड, भारत समेत सभी परमाणु संपन्न देशों को आईसीजे की अदालत में ले गया. इसका कहना था कि इन देशों ने परमाणु अप्रसार संधि का उल्लंघन किया है. भारत ने इस मामले में अपना पक्ष रखते हुए, इसे कोर्ट के अधिकार क्षेत्र से बाहर बताया.
आईसीजे ने साल 2016 में इस मामले में फैसला देते हुए कहा कि ये उसके कार्यक्षेत्र से बाहर है. आईसीजे ने कहा कि वह सिर्फ उन मामलों की सुनवाई कर सकता है जिनमें विवाद दो देशों के बीच हो.