निमोनिया से बच्चों की मौत के मामले में भारत दूसरे स्थान पर


survey shows decline in sex ration over three years in india

 

देशभर में आंगनबाड़ी सर्वे में चिन्हित किए गए बच्चों में करीब आधे (56.6%) ही पूरक पोषण संबंधी प्रावधानों का लाभ उठा पा रहे हैं. मंत्रालय के डाटा के अनुसार, प्रोजेक्ट क्षेत्र में छह महीने से छह साल के बीच बच्चों की कुल संख्या 11.95 करोड़ है.

लेकिन एसएनपी लाभार्थियों की कुल संख्या केवल 6.8 करोड़ 36 है. उदाहरण के लिए जिन क्षेत्रों में आईसीडीएस चलाया जा रहा है उनमें छह महीने से छह साल के बीच के केवल 56.98 फीसदी बच्चों को ही आईसीडीएस के अंतर्गत एसएनपी मिल पा रहा है.

अगर हम मानकर चलें कि इसमें कोई त्रुटि नहीं है और आधिकारिक आंकड़ों में जितना दावा किया जा रहा है उनमें सभी को एसएनपी लाभ मिल रहा है फिर भी पांच करोड़ बच्चे योजना से छूट रहे हैं.

बिहार, हरियाणा, केरल, पंजाब, पुडुचेरी और राजस्थान में पात्र बच्चों में 40 फीसदी से भी कम है. संयुक्त राष्ट्र, 15 नवंबर (भाषा) निमोनिया के कारण वर्ष 2018 में पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मौत के मामले में भारत दूसरे स्थान पर है. यह रोग अब सुसाध्य है और इससे बचाव भी संभव है, बावजूद इसके वैश्विक स्तर पर हर 39 सेकेंड में एक बच्चे की मौत होती है.

संयुक्त राष्ट्र की एक नई रिपोर्ट में यह बात सामने आई है.संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) ने कहा कि पिछले वर्ष वैश्विक स्तर पर निमोनिया के कारण पांच वर्ष से कम उम्र के 8,00,000 से अधिक संख्या में बच्चों की मौत हुई या यूं कहें कि हर 39 सेकेंड में एक बच्चे की मौत हुई.

निमोनिया के कारण जिन बच्चों की मौत हुई उनमें से अधिकतर की उम्र दो वर्ष से कम थी और 1,53,000 बच्चों की मौत जन्म के पहले महीने में ही हो गई.

निमोनिया के कारण सर्वाधिक बच्चों की मौत नाईजीरिया में हुई. यहां यह आंकड़ा 1,62,000 रहा. इसके बाद 1,27,000 की संख्या के साथ भारत, 58,000 के आंकड़े के साथ पाकिस्तान, 40,000 के आंकड़े के साथ कांगो और 32,000 की संख्या के साथ इथोपिया है.

संरा की एजेंसी ने कहा कि पांच वर्ष के कम उम्र के बच्चों में मौत के कुल मामलों में 15 फीसदी की वजह निमोनिया है. इसके बावजूद वैश्विक संक्रामक रोग शोध पर होने वाले खर्च में से महज तीन फीसदी खर्च इस रोग पर किया जाता है.

निमोनिया के कारण होने वाली मौत और गरीबी के बीच भी मजबूत संबंध है. पेयजल तक पहुंच, पर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल नहीं होना और पोषण की कमी तथा भीतरी वायु प्रदूषण के कारण इस रोग का जोखिम बढ़ जाता है. निमोनिया के कारण होने वाली कुल मौत में से आधी की वजह वायु प्रदूषण है.

यह लगभग भूला जा चुका है कि निमोनिया भी एक महामारी है. इसके प्रति जागरुकता लाने के लिए यूनिसेफ और अन्य स्वास्थ्य तथा बाल संगठनों ने वैश्विक कार्रवाई की अपील की.

अगले वर्ष जनवरी में स्पेन में ‘ग्लोबल फोरम ऑन चाइल्डहुड निमोनिया’ पर गोष्ठी होगी जिसमें विश्वभर के नेता शामिल होंगे.


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