जालान समिति ने केंद्र को 1.76 लाख करोड़ से ज्यादा राशि देने से किया इंकार


bank credit growth slows to 10.24 percent and deposits at 9.73 percent

 

भारतीय रिजर्व बैंक ने 26 अगस्त को घोषणा की थी कि वह सरकार को 1.76 लाख करोड़ रुपये हस्तांतरित करेगी. भारतीय रिजर्व बैंक के आर्थिक पूंजीगत ढांचे का आकलन करने वाली जालान समिति में सरकार की ओर से नामित सदस्य वित्त सचिव राजीव कुमार ने सरकार को 1.5 फीसदी प्वाइंट के हिसाब से अतिरिक्त लगभग 54,255 करोड़ रुपये देने की कोशिश की थी, जिसे समिति ने खारिज कर दिया है.

सरकार को आरबीआई से बड़े पैमाने पर धन हस्तांतरित करने से पैदा होने वाले जोखिम को देखते हुए पूर्व आरबीआई गवर्नर बिमल जालान की अध्यक्षता वाली समिति ने ये फैसला लिया है.

27 अगस्त को आरबीआई ने समिति की रिपोर्ट जारी की थी. उसके एक दिन पहले ही आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड ने समिति के सभी सुझावों को स्वीकार कर लिया था.

वित्त सचिव ने प्रस्ताव रखा था कि समिति के सुझावों के मुताबिक मौद्रिक और वित्तीय स्थिरता से जुड़े जोखिम के प्रावधानों को 3 फीसदी पर बरकारार रखा जा सकता है. इस प्रावधान के मुताबिक सुरक्षित सीमा 4.5 फीसदी से 5.5 फीसदी तक होती है.

केंद्र सरकार ने 30 जुलाई को जालान समिति के सदस्य के रूप में राजीव कुमार को नामित किया था. सरकार ने यह नियुक्ति पूर्व वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग के विद्युत मंत्रालय में चले जाने के बाद की थी.
वित्त सचिव के मुताबिक समिति द्वारा बताए गए दुर्लभ जोखिमों के होने की संभावना नहीं है.

रिपोर्ट के मुताबिक, “राजीव कुमार ने अन्य केंद्रीय बैंकों से संबंधित उठाए गए मुद्दों को भी याद किया, जिसके तहत बैंकों ने 2008 के बाद वित्तीय स्थिरता जोखिम के लिए आपातकालीन नकदी सहायता और ऋण की अंतिम व्यवस्था को दरकिनार किए बगैर अत्यधिक नकदी दी थी.”

अगर समिति राजीव कुमार के प्रस्तावों को अपनी स्वीकृति दे देती तो आरबीआई को सरकार को अतिरिक्त 54,255 करोड़ रुपये की पूंजी देनी पड़ती.

सरकार को आरबीआई के द्वारा दिए गए कुल 1,76,501 करोड़ रुपये में से 1,23,414 करोड़ रुपये वर्ष 2018-19 का अधिशेष है. इसके अलावा सोमवार को हुई आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड की बैठक में संशोधित आर्थिक पूंजी ढांचा (ईसीएफ) के प्रावधानों के तहत अतिरिक्त 52,637 करोड़ रुपये देने की स्वीकृति दी गई थी.

हस्तांतरित की गई ये राशि पिछले पांच साल के औसत 53,000 करोड़ से तीन गुणा ज्यादा है.

जून 2018 तक आरबीआई के बैलेंस शीट में 36.17 लाख करोड़ रुपये थे.

समिति ने अपनी सिफारिश में कहा, “जोखिम प्रावधानों के महत्व को समझते हुए समिति का यह विचार है कि वित्तीय स्थिरता जोखिम का आकार सही होना जरूरी है, जिससे अपेक्षाकृत प्रतिकूल वित्तीय स्थिरता जोखिम को कम किया जा सके. साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जा सके कि यह जरूरत से ज्यादा ना बढ़ पाए.”

सरकार और आरबीआई के बीच अनबन की कई वजहों में अधिशेष का हस्तांतरण करना भी एक मुद्दा था. और ऐसा कहा जाता है कि आरबीआई के पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल ने इसी मसले पर अपना इस्तीफा दिया था.

पटेल के नेतृत्व में अधिशेष हस्तांतरण की एक नई रूपरेखा बनाने के लिए एक समिति के गठन पर आरबीआई बोर्ड सहमत हुआ था और इसके तीन हफ्ते बाद ही पटेल ने आरबीआई के गवर्नर पद से इस्तीफा दे दिया था. लेकिन, इससे बहुत पहले ही पटेल और सरकार के संबंध में कड़वाहट आ चुकी थी. केंद्र ने आरबीआई अधिनियम के अनुच्छेद 7 को हटाने का फैसला किया था, जिसके तहत केंद्र सरकार आरबीआई के फैसले में दखल देते हुए उसे कोई भी निर्देश दे सकती है.

जालान समिति ने अपनी सिफारिशों में यह भी कहा है कि 2020-21 से आरबीआई को अपनी लेखा वर्ष (जून से जुलाई) और वित्तीय वर्ष (अप्रैल से मार्च) में तालमेल बैठाना चाहिए.

सिफारिश में यह भी कहा गया है कि हर पांच सालों में आर्थिक पूंजी ढांचे का आकलन किया जाना चाहिए.


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