भूमि अधिग्रहण मामले की सुनवाई से हटने से जस्टिस अरुण मिश्रा का इनकार
भूमि अधिग्रहण एक्ट से जुड़े पांच मामलों की सुनवाई के लिए गठित बेंच से जस्टिस अरुण मिश्रा ने हटने से इनकार कर दिया है. सोशल मीडिया पर उन्हें हटाए जाने को लेकर चल रहे अभियान के बीच उन्होंने कहा, ‘मेरी अंतरात्मा साफ है, मेरी ईमानदारी भगवान के सामने स्पष्ट है, मैं नहीं हटूंगा.’
इससे पहले वरिष्ठ वकील श्याम दिवान ने कहा था कि उनके द्वारा मामले की सुनवाई से फैसला प्रभावित हो सकता है.
12 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि भूमि अधिग्रहण एक्ट से जुड़े पांच मामलों की सुनवाई के लिए जस्टिस अरुण मिश्रा के नेतृत्व में पांच जजों की नई संवैधानिक पीठ का गठन होगा. इस पीठ में जस्टिस इंदिरा बनर्जी, विनीत सरन, एमआर शाह और रविंद्र भट्ट शामिल होंगे. यह बेंच 15 अक्टूबर से सुनवाई शुरू करेगी.
जस्टिस मिश्रा ने कहा, ‘क्या यह कोर्ट को बदनाम करना नहीं है? क्या यह अदालत को बदनाम करना नहीं है? यदि आपने इस पर मुझसे बात की होती तो मैं निर्णय लेता. लेकिन, क्या आप मुझे और भारत के चीफ जस्टिस को बदनाम करने के लिए इसे सोशल मीडिया में उछाल रहे हैं? क्या अदालत का माहौल ऐसा होना चाहिए? ऐसा बिल्कुल नहीं हो सकता. मुझे एक भी जज के बारे में बताइए जिसने इस बारे में अपनी राय नहीं रखी हो. क्या इसका मतलब यह है कि हम सभी अयोग्य हैं? यह मामला मेरे सामने सूचिबद्ध नहीं किया जाना चाहिए था. लेकिन, अब यह मेरे समक्ष है, लिहाजा मेरी निष्ठा पर सवाला उठाया गया है.’
उन्होंने कहा कि अगर मुझे लगता है कि मैं किसी भी बाहरी कारणों से प्रभावित हो जाऊंगा तो सबसे पहले मैं खुद को यहां से अलग कर लूंगा.
अखिल भारतीय किसान संगठन ने भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को पत्र लिखकर अपील की है कि भूमि अधिग्रहण से जुड़े मामलों पर जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता में बनाई गई नई बेंच को सुनवाई नहीं करनी चाहिए.
भूमि अधिग्रहण एक्ट से जुड़े मामले में 2014 में जस्टिस मदन लोकुर, आरएम लोढ़ा और कुरियन जोसेफ ने फैसला सुनाया था कि केवल हर्जाने की राशि को सरकारी खजाने में जमा करने का मतलब यह नहीं होगा कि जमीन के मालिक ने हर्जाने को स्वीकार कर लिया है. यदि जमीन का मालिक हर्जाना लेने से मना कर देता है तो रकम भूमि अधिग्रहण एक्ट के सेक्शन 31 के तहत कोर्ट में जमा कराई जानी चाहिए.
इसी फैसले को 2018 में जस्टिस अरुण मिश्रा ने पलट दिया था. नए फैसले के तहत कहा गया था कि अगर रकम को सरकारी खजाने में जमा कराया जा चुका है तो इसे जमीन के मालिक द्वारा हर्जाने के रूप में स्वीकार माना जाएगा.