मराठा आरक्षण: महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में डाली याचिका
महाराष्ट्र सरकार ने मराठा आरक्षण पर बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक कैविएट पिटीशन (प्रतिवाद याचिका) डाली है. महाराष्ट्र सरकार ने यह याचिका बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ डाली जाने वाली याचिकाओं का अनुमान लगाकर डाली है.
महाराष्ट्र सरकार की तरफ से यह याचिका एडवोकेट निशांत आर काटनेस्वारकर ने डाली है. याचिका मे कहा गया है कि बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ डाली जाने वाली याचिकाओं पर कोई भी आदेश बिना महाराष्ट्र सरकार का पक्ष सुने ना दिया जाए.
इससे पहले मराठा आरक्षण को चुनौती देती याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार का फैसला बरकरार रखा. जस्टिस रंजीत मोरे और जस्टिस भारती डांगरे की डिवीजन बेंच ने मराठा आरक्षण के खिलाफ डाली गई याचिकाओं को खारिज कर दिया.
पिछले साल 30 नवंबर को महाराष्ट्र सरकार ने नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में मराठा समुदाय को अन्य पिछड़ा वर्ग श्रेणी के तहत 16 प्रतिशत आरक्षण देने को लेकर विधानमंडल में विधेयक पारित किया था. सरकार के इस फैसले को चुनौती देते हुए कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई थीं.
महाराष्ट्र सरकार ने लगातार यह तर्क दिया है कि उसने मराठा समुदाय को आरक्षण देने का निर्णय महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग (एसबीसीसी) के सिफारिशों के आधार पर किया है. आयोग के मुताबिक़, उसने मराठा समुदाय की सामाजिक और आर्थिक स्थिति पर रिपोर्ट सौंपने से पहले 43,629 परिवारों का सर्वेक्षण किया गया था.
आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि मराठा समुदाय के लोग सरकारी और अर्ध-सरकारी सेवाओं में कम प्रतिनिधित्व के साथ ‘सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग के नागरिक हैं.’ इस मामले में पूर्व एटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी भी कोर्ट में बहस के दौरान ये कह चुके हैं कि राज्य सरकार के पास ये दिखाने का पर्याप्त संख्यात्मक आधार है कि मराठा समुदाय सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा है और इसी कारण से सरकार को 50 फीसदी आरक्षण कोटे की सीमा से आगे बढ़ना पड़ा है.