आंगनवाड़ी को मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अधीन किए जाने का प्रस्ताव


National Education Policy proposes formal education from age of three, anganwadis to come under HRD ministry

 

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 के ड्राफ्ट में शिक्षा का अधिकार एक्ट के तहत सरकार कक्षा एक से पहले के तीन साल तक प्री-स्कूल के सभी बच्चों को औपचारिक रूप से भारतीय शिक्षा व्यवस्था के अंतर्गत लाएगी.

ड्रॉफ्ट नीति के अनुसार स्कूल पूर्व शिक्षा को स्कूली प्रणाली के तहत मानव संसाधन विकास मंत्रालय विनियमित करेगा. अब तक 3 से 6 साल तक के बच्चों की प्रारम्भिक शिक्षा आंगनवाड़ी और प्राइवेट, प्री-स्कूल की देखरेख में हो रही थी.

इस मसौदे से आंगनवाड़ी प्रणाली में उथल-पुथल मचने के आसार हैं. इसको पिछले चार दशकों से स्त्री एवं बाल विकास मंत्रालय संचालित करता रहा है. ड्रॉफ्ट नीति में कहा गया है कि 2019 के अंत तक एक अंतर-मंत्रालय टास्क फोर्स बदलाव के लिए एक संयुक्त रोडमैप तैयार करेगी.

मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय इस कदम का आंकलन कर रहा है. इसके लिए शिक्षकों की नियुक्ति, ट्रेनिंग, बुनियादी ढांचे और शिक्षण सामग्री के साथ-साथ पोषण संबंधी पहलूओं को पूरा करने के लिए लागत बढ़ेगी. इस मसौदे में बच्चों को सुबह का नाश्ता देने का भी प्रस्ताव है.

अधिकारी के अनुसार मंत्रालय के पास आंगनवाड़ी और प्री-स्कूल में नहीं पढ़ने वाले बच्चों के सही आंकड़े नहीं है. स्त्री एवं बाल विकास मंत्रालय पिछले 40 सालों से इससे जुड़ा हुआ है. यह कहना मुश्किल होगा कि वे इसे मानव संसाधन विकास मंत्रालय को सौंपने के लिए राजी होंगे.

मसौदा नीति में आंगनवाड़ियों के योगदान की तारीफ की गई है. बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण के मामले में तो स्थिति बेहतर है, लेकिन शिक्षा के मामले में इनका रिकॉर्ड इतना मजबूत नहीं है.

अधिकांश आंगड़वाड़ी प्रारम्भिक बाल्यावस्था में देखभाल और शिक्षा (ईसीसीई) के शैक्षणिक पहलुओं पर बहुत ही कम ध्यान दे पायी हैं.

वर्तमान में आंगनवाड़ी में संसाधनों की आपूर्ति और शिक्षा के बुनियादी ढांचे में काफी कमी है, नतीजतन उनका झुकाव 2 से 4 वर्ष की आयु के बच्चों को शामिल करने की ओर अधिक होता है. और शैक्षिक रूप से महत्वपूर्ण 4 से 6 वर्ष की आयु सीमा के बच्चों की तरफ कम. इसका एक और कारण प्रशिक्षित शिक्षकों या फिर आरंभिक शिक्षा के लिए समर्पित शिक्षकों की बेहद कमी भी है.

मसौदे में कहा गया है कि आमतौर पर नियुक्त शिक्षक प्रशिक्षित नहीं होते है. अंबेडकर विश्वविद्यालय दिल्ली, के हाल ही में (2017) में किए गए ‘प्रारम्भिक बाल्यावस्था की शिक्षा का प्रभाव’ विषय पर अध्ययन से स्पष्ट होता है कि विद्यालय में दाखिले से पूर्व प्राथमिक शिक्षा पूरी कर चुके बच्चों के एक बहुत बड़े तबके के पास विद्यालयी-शिक्षा में प्रवेश के लिए जरूरी दक्षताओं का आभाव था.

यह नीति इस बात की अनुशंसा करती है कि 3 से 8 वर्ष के बच्चों के लिए एक नए उत्कृष्ट पाठ्यक्रम और शैक्षिक ढांचा तैयार करे. इसमें खेल-कूद के साथ-साथ तीन भाषाओं को सीखने की शुरुआत भी हो.


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