सर्वे के बाद ‘पीएम आवास योजना’ के लाभार्थियों की संख्या में बड़ा इजाफा
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मोदी सरकार की साल 2022 तक ‘सबके लिए आवास’ स्लोगन के साथ शुरू की गई प्रधानमंत्री आवास योजना अपने लक्ष्य से भटकती नजर आ रही है. दरअसल नए सर्वे से साफ हुआ है कि इसके लक्ष्यित लाभार्थियों की संख्या में गड़बड़ है.
सरकार ने इस योजना के तहत 2.95 करोड़ लाभार्थियों को चिह्नित किया था. लेकिन नए सर्वे के मुताबिक इसमें 3.54 करोड़ अतिरिक्त लाभार्थियों की पहचान की गई है.
सामाजिक कार्यकर्ता और जानकार कहते हैं कि सरकार को इस बारे में कोई अंतिम लक्ष्य निर्धारित नहीं करना चाहिए, क्योंकि पुराने परिवार बंटवारे के दौर से गुजरते हैं. इससे जरूरतमंदों की संख्या में इजाफा होता है.
टेलीग्राफ में छपी खबर के मुताबिक जिन 3.54 करोड़ नए लाभार्थियों की पहचान की गई है, उनमें सर्वाधिक 58 लाख बंगाल से हैं.
प्रधानमंत्री आवास योजना मोदी सरकार की एक फ्लैगशिप योजना है. इसे नवंबर 2016 में लांच किया गया था. इसमें 2022 तक 2.95 करोड़ लाभार्थियों को पक्का मकान देने के लिए चिह्नित किया गया था.
इन लाभार्थियों को सामाजिक-आर्थिक, जातिगत जनगणना के माध्यम से चुना गया था. ये जनगणना केंद्रीय परिवार कल्याण मंत्रालय ने राज्यों की सहायता से साल 2011-12 में करवाई थी.
लेकिन राज्यों ने इस तरह से लाभार्थियों के चयन पर आपत्ति जताई थी. उनकी ओर से कहा गया था कि इसमें बहुत सारे जरूरतमंद छूट गए हैं.
इसके बाद 2017 में केंद्र ने राज्यों को उनकी ओर से सर्वे कराने की छूट दे दी थी. ये सर्वे इस साल मार्च में पूरे हो गए. आवास प्लस नाम से कराए गए इन सर्वे से ही 3.54 करोड़ नए लाभार्थी सामने आए हैं.
एनके साहू 2011-12 में हुई जनगणना में शामिल थे. उनके मुताबिक परिवारों में अलगाव के चलते लाभार्थियों की संख्या में इजाफा हुआ है.
साहू कहते हैं, “जनगणना के सात-आठ साल बाद शादियों, अलगाव आदि के चलते बहुत से नए परिवार सामने आ चुके हैं. शादी के बाद अलग घर की मांग होती है, इसके चलते इसे प्राथमिकता दी जाती है.”
योजना में अब तक हुए काम की समीक्षा के लिए एक बैठक का आयोजन किया गया. इसमें बताया गया कि 2019 तक सरकार का लक्ष्य एक करोड़ घर बनाने का था, जिससे से 80 लाख अब तक बनाए जा चुके हैं.
पीएम आवास योजना को लागू करने में लाभार्थियों के पास जमीन ना होना एक बड़ी समस्या है. बैठक को दौरान बताया गया कि एक करोड़ लोगों में से करीब 4.22 लाख लोगों के पास घर बनाने के लिए जमीन ही नहीं है.
इस योजना के अंतर्गत मैदानी क्षेत्र के प्रत्येक लाभार्थी को 1.2 लाख रुपये और पहाड़ी क्षेत्र में 1.3 लाख रुपये दिए जाते हैं. इसमें से मैदानी क्षेत्र में केंद्र 60 फीसदी जबकि पहाड़ी क्षेत्रों में 90 फीसदी वहन करता है. बाकी हिस्सा राज्यों के माध्यम से लाभार्थी को मिलता है.