विकासशील देशों में इंटरनेट का इस्तेमाल नहीं करने वाले लोग प्रभाव डालने में पीछे
एक अध्ययन में मुफ्त इंटरनेट पाने को मूल अधिकार के रूप में माने जाने की सिफारिश की गई है. अध्ययन में कहा गया है कि विकासशील देशों में इंटरनेट का इस्तेमाल नहीं करने वाले लोग वैश्विक स्तर पर प्रभाव डालने में पीछे हैं.
ब्रिटेन के बर्मिंघम विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने केरल का उदाहरण देते हुए कहा है कि भारत का यह राज्य इंटरनेट को मूल अधिकार मानकर यहां के तीन करोड़ पांच लाख लोगों को मुफ्त इंटरनेट की सुविधा देने जा रही है.
शोधकर्ताओं ने कहा है कि बदलते वक्त के साथ राजनीतिक गतिविधियां ऑनलाइन बढ़ती जा रही हैं. ऐसे में अगर कुछ लोगों के पास इंटरनेट सेवाएं हैं और कुछ लोगों के पास नहीं तो यह मूल अधिकार का हनन है.
यह अध्ययन जर्नल ऑफ एप्लाइड फिलॉसफी में प्रकाशित किया गया है.
अध्ययन के अनुसार इंटरनेट मूल अधिकार को सुरक्षित रखने में अहम भूमिका निभा सकता है.
बर्मिंघम विश्वविद्यालय की शिक्षक मर्टेन रेगलिज ने एक बयान में कहा, ‘इंटरनेट सुविधा कोई लक्जरी नहीं है, बल्कि एक मौलिक अधिकार का मामला है. और सबको मुफ्त इंटरनेट बिना सेंसर और बिना निगरानी किए उपलब्ध कराना चाहिए.’
रेगलिज ने कहा, ‘बोलने की आजादी और जानकारी प्राप्त करने के लिए लोग आज इंटरनेट पर निर्भर हैं.’
शोधकर्ताओं ने #मीटू कैंपेन का उदाहरण देते हुए कहा कि इंटरनेट की वजह से कई महिलाओं ने अपने साथ हुए यौन शोषण की घटना को लिखा.