मनरेगा मजदूरों को मजदूरी देने के लिए फंड नहीं
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केन्द्र सरकार की महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना(मनरेगा) फंड की कमी झेल रही है. योजना के तहत मजदूरी देने के लिए राज्यों के पास फंड नहीं बचा है. वित्तीय वर्ष 2018-19 के तीन महीने पहले ही योजना के लिए आवंटित 99 फीसदी राशि खर्च हो चुकी है. वहीं, 11 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में योजना का बजट घाटे में है.
मनरेगा के तहत मजदूरी मिलने में देरी की खबरें मीडिया में आती रही हैं. सरकारी आंकड़ों से भी यह बात साबित होती है. जानकारों के मुताबिक फंड की कमी की वजह से हालात बदतर हो सकते हैं.
मनरेगा के वित्तीय स्टेटमेंट के मुताबिक योजना के लिए 59,053 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था. अंग्रेजी अखबार द हिन्दू में छपी रिपोर्ट के मुताबिक पांच जनवरी तक 58,701 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं. जिनमें मजदूरों की बकाया राशि भी शामिल है. तीन महीनों में खर्च करने के लिए केवल 331 करोड़ की राशि बची है. वहीं 11 राज्यों में आवंटित बजट से अधिक खर्च हुआ है.
मजदूर किसान शक्ति संगठन के निखिल डे मानते हैं कि इस साल कम बारिश और सुखाड़ की वजह से हालात मुश्किल हो गए हैं. वह कहते हैं, “अभी तीन महीने बाकी हैं जबकि आनेवाले समय में मनरेगा में सबसे अधिक काम मिलता है, फंड की कमी से दिक्कतें बढ़ेंगी.”
अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के लिए शोध कर रहे राजेन्द्र नारायण बतातें है कि साल 2017-2018 की तुलना में साल 2018-19 में 32 फीसदी कम काम (आवेदन की तुलना में) मिले हैं.
अनुमान के मुताबिक रोजगार की मांग को देखते हुए 76,131 करोड़ रुपये की राशि जारी की जानी चाहिए थी. जबकि साल साल 2018-19 में 30 फीसदी कम राशि जारी की गई.