महिषा दशहरा उत्सव मनाने से रोका गया
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प्रगतिशील लेखकों और दलित कार्यकर्ताओं को शुक्रवार को तय आयोजन स्थल पर महिषासुर के सम्मान में आयोजित होने वाला महिषा दासरा कार्यक्रम करने से रोक दिया गया.
कार्यक्रम शुक्रवार को मैसूर के टाउन हॉल में आयोजित होने वाला था. लेकिन आखिरी समय में जिला प्रशासन ने लोगों को टाउन हॉल में जुटने से रोकने के लिए नोटिस जारी कर दिया. तय कार्यक्रम के तहत लोग टाउन हॉल में जुटने वाले थे, जहां से पैदल चलकर वो चामुंडी हिल स्थित महिषासुर की मूर्ति तक जाने वाले थे.
लेकिन अचानक कार्यक्रम में बदलाव करना पड़ा और आयोजन दलित बस्ती अशोकापुरम में किया गया. आयोजकों ने बीजेपी सरकार और मैसूर के सांसद प्रताप सिम्हा को जिम्मेदार ठहराते हुए सांसद पर उनके मूलभूत अधिकारों के हनन का आरोप लगाया है.
द टेलीग्राफ लिखता है कि प्रचलित मान्यताओं के अनुसार दासरा इस खुशी में आयोजित किया जाता है क्योंकि चामुंडी देवी ने राक्षस राजा महिषासुर का वध किया था. वहीं कई दलित और प्रगतिशील समुहों का मानना है कि महिषासुर एक बौद्ध भिक्षु था जिनका उत्सव मनाया जाना चाहिए.
मैसूर विश्वविद्यालय में प्राध्यापक और आयोजकों में से एक महेश चंद्रा गुरू ने कहा, “कांग्रेस और गठबंधन सरकार में हम शांति पूर्वक तरीके से महिषासुर दशहरा मनाते थे. पर बीजेपी सरकार के वापस आते ही सब कुछ बदल गया. हमें निराशा है कि हमें तय आयोजन स्थल पर कार्यक्रम नहीं करने दिया गया.”
कार्यक्रम के लिए चार रथ का भव्य निर्माण किया गया था. जिनके नाम थे- बुद्ध, भीमराव अंबेडकर, शासक अशोका और महिषासुर.
सार्वजनिक स्थल पर महिषासुर दासरा के आयोजन का विरोध करने वाले सिम्हा ने कहा, “जो महिषासुर के यहां जन्मे हैं, जो कि एक राक्षस था, वो अपने घर में मनाए महिषासुर दासरा.”
पूरे विवाद पर मैसूर के डिप्टी कमिश्नर अभिराम जी शंकर ने कहा कि वो केवल आदेश का पालन कर रहे हैं. उन्होंने कहा, “स्थानीय लोगों ने आयोजन के खिलाफ शिकायत की थी.”
तत्कालीन मानव और संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने साल 2017 में जेएनयू में छात्रों द्वारा महिषासुर शहीदी दिवस मनाने पर आपत्ति जताई थी.
प्रख्यात लेखक और कार्यक्रम के आयोजनकों में शामिल केएस भगवान शुक्रवार को होने वाले कार्यक्रम में हिस्सा लेना चाहते थे पर उन्हें अनुमति नहीं मिली. भगवान को जान की धमकियां मिलने के बाद से कड़ी पुलिस सुरक्षा में रखा जाता है.
उन्होंने कहा, “इस तरह के शांतिपूर्ण कार्यक्रम को टाउन हॉल में होने से रोक दिया गया. मैं इसकी निंदा करता हूं. बीजेपी ऐतिहासिक तथ्यों, तार्किकता, वैज्ञानिक सोच, मानवता और सुधार के खिलाफ काम कर रही है.”
उन्होंने महिषासुर को असुर या राक्षस कहे जाने का विरोध करते हुए कहा, “सुर का अर्थ मदिरा होता है और असुर का अर्थ जो मदिरा सेवन नहीं करते. पर वैदिक धर्म ने शब्द का अर्थ बदल कर इसे राक्षसों के लिए इस्तेमाल करना शुरू कर दिया.”
धर्म के नाम पर पिछड़ी मानसिकता का विरोध करने वाले भगवान ने कहा, “महिषासुर राक्षस नहीं था. वो बौद्ध भिक्षु थे. ये वैदिक धर्म है जिसने सभी स्वदेशी राजाओं और दर्शनिकों को राक्षस के रूप में प्रस्तुत किया.”
इसी साल जनवरी में उनकी कन्नड़ भाषा में लिखी किताब “Rama Mandira Yeke Beda” (क्यों राम मंदिर की जरूरत नहीं है) प्रकाशित हुई. किताब में उन्होंने राम को ऐसे पात्र के रूप में प्रस्तुत किया जिसमें “कमजोरियां” हैं.