सर्व सेवा संघ ने CAA और NRC पर रोक लगाने के लिए राष्ट्रपति को पत्र लिखा


sarv sangh writes letter to president to stop nrc and caa

 

सर्व सेवा संघ ने एनआरसी और नागरिकता संशोधन कानून पर रोक लगाने को लेकर देश के राष्ट्रपति को पत्र लिखा है. पत्र की महत्वपूर्ण बातें इस प्रकार हैं.

1. करोड़ों-करोड़ रुपये खर्च करके असम में राष्ट्रीय नागरिक पंजी बनाई गई. अंतिम पंजी में पीढ़ियों से रह रहे 19,06,557 लोगों को विदेशी नागरिक घोषित कर दिया गया है. विडंबना तो यह है कि एक ही परिवार के कुछ लोगों को भारतीय माना गया है और कुछ को विदेशी.

2. दूसरी तरफ नये नागरिकता संशोधन कानून में कुछ पड़ोसी देशों से कुछ खास धर्मों के अवैध रूप से भारत में रहने वाले लोगों को प्रवेश कर यदि सिर्फ पांच वर्ष से यहां हैं तो उन्हें भारत की नागरिकता दी जाएगी.

3. राष्ट्रीय नागरिकता पंजी के नाम पर असम में 6 डिटेंशन कैंपों में 25 से अधिक निर्दोष नागरिकों की मृत्यु हो गई है.

4. राष्ट्रीय नागरिकता पंजी के नाम पर असम में जुल्म हुए उसका एक ही उदाहरण देना काफी है. चिरांग जिले के विष्णुपुर-1 गांव से 59 वर्षीय मधुमाला मंडल नाम की महिला को असम पुलिस के बॉर्डर विंग ने गिरफ्तार किया. वह इतनी गरीब थी कि अपनी गिरफ्तारी को न्यायलय में चुनौती नहीं दे सकी. जब इस गिरफ्तारी की जानकारी सामाजिक कार्यकर्ताओं को हुई तब उन्होंने इसे न्यायालय में चुनौती दी. अंतत: तीन वर्षों के बाद उसे निर्दोष घोषित करते हुए रिहा किया गया. पर तब तक उसकी दुनिया उजड़ चुकी थी. पता नहीं इस तरह की कितनी मधुमाला मंडल डिटेंशन कैंपों में यातनाएं सहन कर रही होंगी.

5. नए नागरिकता कानून को मुसलमानों से परहेज है. उसे चीन, श्रीलंका, बर्मा, नेपाल जैसे देशों से भी परहेज है. इन देशों से कोई व्यक्ति भारत में नागरिकता के लिए आवेदन नहीं कर सकता है.

6. भारत में लाखों की संख्या में दशकों से रह रहे चीन के बौद्ध शरणार्थी, जिसमें परमपूज्य दलाई लामा और निर्वासित तिब्बत सरकार के भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री सामदोंग रिनपोछे भी शामिल हैं, को नया अधिनियम उन्हें नागरिकता के लायक नहीं मानता.

7. भारत में लाखों की संख्या में पड़ोसी देश नेपाल के लोग हैं. एक जमाने में नेपाल के भूतपूर्व प्रधानमंत्री बीपी कोइराला तथा गिरिजा प्रसाद कोइराला भी शरणार्थी के रूप में दशकों तक भारत में थे. अब नेपाल के लोग भारत में नागरिकता के पात्र नहीं हैं.

8. अफगानिस्तान और पाकिस्तान से बड़ी संख्या में राजनीतिक उत्पीड़न के शिकार सिया, अहमदिया, सूफी, जीये सिंध के कार्यकर्ता आदि ने भारत में शरण ले रखी है. ये लोग सिर्फ इस कारण नागरिकता से वंचित रह जाएंगे क्योंकि वे मुसलमान हैं.

9. ये सारी बातें भारत के संविधान की मूल भावना के खिलाफ हैं. संविधान का अनुच्छेद 14 कहता है कि यहां धर्म, जाति, वंश, लिंग या जन्मस्थान के नाम पर किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा. लेकिन नया अधिनियम खुलेआम इस भेदभाव को स्वीकार करता है.

10. अपने देश में करोड़ों रुपये खर्च करके आधार कार्ड बनाए गए, मतदाता पहचान पत्र बनाए गए. अब एनआरसी पर अरबों रुपये खर्च करना जनता की गाढ़ी कमाई का अपव्यय मात्र है.

11. इस अधिनियम के खिलाफ सहज ही पूरे देश का गुस्सा फूट पड़ा है. युवाओं में विशेष आक्रोश है. इस अधिनियम का विरोध करने वाले पांच नौनिहालों की पुलिस ने जान ले ली. बंदूक के बल पर जनता के आक्रोश को लंबे समय तक दबाया नहीं जा सकता.

12. भारत का संविधान सरकार की गलत नीतियों का शांतिपूर्ण विरोध करने की अनुमति देता है. यही तो लोकतंत्र की खासियत है. लेकिन केंद्र सरकार ने जिस तरह जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्र-छात्राओं पर नृसंश प्रहार किए हैं, उसे देखकर जल्लाद की आंखों में भी आंसू आ जाएंगे.

13. इसी तरह का कानून 1906 में दक्षिण अफ्रीका में लाया गया था. महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीय मूल के लोगों ने इसका पुरजोर विरोध किया था. 11 सितंबर 1906 को नागरिकता कानून का विरोध करते हुए महात्मा गांधी ने कहा था, ‘इस बिल के विरोध में सारे उपाय किए जाने के बावजूद भी यह धारा सभा में पास हो जाए तो हिंदुस्तानी उसके सामने हार ना मानें और हार ना मानने के फलस्वरूप जो दुख भोगने पड़ें उनको बहादुरी से सहन करेंगे.’

14. भारतीय गणतंत्र के मुखिया होने के नाते आपसे सर्वोदय के सभी संगठन अपील करते हैं कि इस अधिनियम पर तुरंत रोक लगाएं और लोकतंत्र की हत्या होने से रोकें.


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