भूमि कानून में संशोधन कर हरियाणा सरकार ने की सुप्रीम कोर्ट की अवमानना
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सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब भूमि परीक्षण संशोधन अधिनियम (पीएलपीए, 1900) पर रोक लगाते हुए हरियाणा सरकार को चेतावनी दी है.
27 फरवरी को हरियाणा सरकार की ओर से पारित पीएपीए कानून में संशोधन को सुप्रीम कोर्ट ने कोर्ट की अवमानना करार दिया है.
जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने हरियाणा सरकार के वकील को चेतावनी भरे लहजे में कहा है कि “सरकार की ओर से पारित संशोधन में शिवालिक और अरावली पहाड़ियों के पर्यावरण से समझौता नहीं किया जाना चाहिए.” कोर्ट ने सरकार की ओर से पारित संशोधन पर रोक लगाते हुए नए कानून पर विस्तृत रिपोर्ट जमा करने को कहा है.
जस्टिस मिश्रा ने अपने आदेश में कहा, “अगर सुप्रीम कोर्ट की ओर से पास किए गए कानून में संशोधन के समय पर्यावरण से समझौता किया गया तो हरियाणा सरकार को इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे.” जस्टिस मिश्रा ने हरियाणा सरकार के वकील से कहा कि “हम देख सकते हैं कि पारित संशोधन बिल्डरों के पक्ष में है, जो जंगलों को तबाह कर देगा. इस संबंध में हमने आपको पहले भी चेतावनी जारी की है. ये हैरानी की बात है कि कोर्ट की चेतावनी के बावजूद इस तरह का कदम उठाया गया. इसकी बिलकुल भी इजाजत नहीं दी जाएगी. यह कोर्ट की अवमानना है.”
27 फरवरी को हरियाणा विधानसभा में पीएलपीए संशोधन पारित किया गया था. सरकार की ओर से पेश किया गया ये कानून सदन में विपक्षी कांग्रेस और इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के भारी विरोध के बीच पारित किया गया.
राज्य मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने सदन में विधेयक पारित होने पर खुशी जताते हुए कहा था कि “विधेयक राज्य की जनता के हित में है.” उन्होंने कहा कि “यह अधिनियम 1900 में बना था, तब और आज की परिस्थितियों में काफी अंतर है. ऐसे में पीएलपीए को वर्तमान परिस्थितियों के अनुरूप बनाना ही हमारा उद्देश्य है.”
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने राज्य सरकार के फैसले की कड़ी निंदा की. सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर उन्होंने कहा, “बीजेपी सरकार ने बिल्डरों और माफियाओं के साथ मिलकर संशोधन बिल के जरिए 119 साल पुराने एक्ट को बदला है, पर सुप्रीम कोर्ट ने इस भ्रष्टाचारी निर्णय पर रोक लगाकर भाजपा सरकार को कड़ी फटकार लगाई है.”
सदन में संशोधित कानून पारित होने के बाद अलग-अलग समाज सेवी संगठनों और पर्यावरणविदों ने इसे पर्यावरण के लिए खतरा बताया. उन्होंने कहा अरावली श्रेणी गुरूग्राम में करीब 16,000 एकड़ और फरीदाबाद में करीब 10,000 एकड़ पर ही रह गई है. “हमें अरावली के भविष्य को लेकर अब चिंता हो रही है.” उनका मानना है कि संशोधन के बाद इस जमीन पर आसानी से खुदाई, निर्माण कार्य और खनिजों का दोहन हो सकेगा.
सदन में पारित संशोधन पर पर्यावरणविद् विजय धस्माना ने चिंता जाहिर करते हुए कहा, “पीएलपीएल राज्य में शिवालिक और अरावली की पहाड़ियों को बेहतर संरक्षण और सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से बनाया गया था. इस संशोधन के बाद पीएपीए के जरिए अरावली को दिया गया संरक्षण खत्म हो जाएगा, ये राज्य में एमसीजी (गुरूग्राम नगर निगम), हुड्डा और फरीदाबाद सभी जमीनों पर लागू होगा.
उन्होंने बताया कि, “साल 1900 में पारित कानून का अर्थ है संरक्षित भूमि के आस-पास के इलाकों को मिट्टी के कटाव से बचाना. इसका अर्थ ये है कि आप ऐसा कोई काम नहीं करेंगे जो मिट्टी के कटाव के लिए जिम्मेदार हो, जैसे- खेती, जोतना, खुदाई, किसी तरह का निर्माण कार्य आदि. पर कानून में संशोधन के बाद लोग संरक्षित जमीन पर आसानी से निर्माण कार्य कर पाएंगे.”
सदन में पारित कानून की वजह से अरावली के काफी बड़े क्षेत्र में निर्माण और पेड़ों की कटाई के रास्ते खुल गए थे. कानून की धारा 2, 3, 4, और 5 में संशोधन किया गया, जिसके जरिए अरावली और शिवालिक पहाड़ियों के संरक्षित 29,682 हेक्टेयर भूमि को विकास कार्यों के लिए खोल दिया गया. इसमें गुरूग्राम की 6,869 हेक्टेयर और फरीदाबाद की करीब 4,227 हेक्टेयर भूमि भी शामिल है. इसका असर फरीदाबाद की कांत एन्क्लेव पर भी पड़ेगा.
बीते साल 11 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने फरीदाबाद के कांत एन्क्लेव पर बड़ा फैसला सुनाया था. जस्टिस मदन बी लुकुर और दीपक गुप्ता की बेंच ने अपने फैसले में कहा था कि कांत एन्क्लेव फॉरेस्ट लैंड है. जिसके बाद कोर्ट ने यहां 18 अगस्त, 1992 के बाद बने सभी निर्माण कार्यों को तोड़ने के आदेश दिए थे.
हालांकि पारित पीएलपीए संशोधन पर शीर्ष कोर्ट की ओर से रोक लगा दी गई है. लेकिन इसके बाद राज्य में पर्यावरण को लेकर सरकार के रवैए पर सवाल जरूर खड़े हो गए हैं. ऐसे में देखना होगा कि सरकार अपनी सफाई में किन-किन तथ्यों को सामने रखती है.