दुती चंद समलैंगिकता की बात स्वीकार करने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी
100 मीटर फर्राटा में रिकार्डधारक और एशियाई खेलों में दो बार की रजत पदक विजेता दुती चंद ने खुद के समलैंगिक होने की बात कही है. दुती ने बताया कि वे इस समय अपने ही कस्बे की एक लड़की के साथ समलैंगिक संबंधों में हैं. दुती चंद ऐसी पहली भारतीय खिलाड़ी हैं जिन्होंने खुद के समलैंगिक होने की बात को स्वीकार किया है.
दुती ने बताया कि वे अपनी साथी के साथ बीते तीन सालों से समलैंगिक संबंधों में हैं. उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने से पहले वे अपने इस संबंधों का कोई भविष्य नहीं देख रहीं थीं. लेकिन जब कोर्ट ने समलैंगिक संबंधों को वैधता दे दी तब इस जोड़े ने साथ में जिंदगी बिताने का फैसला कर लिया.
दुती ने कहा, “जब समलैंगिक संबंधों को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया तब हमने निश्चय किया कि हम दोनों अब साथ में जिंदगी बिताएंगे. हमने शादी करने और एक छोटा सा परिवार बनाने का निर्णय लिया.”
अपनी जीवनसाथी के बारे में बताते हुए दुती ने कहा, “वो मेरे ही कस्बे की है और एक खेल प्रशंसक है. उसने मेरे करियर को लेकर किए गए संघर्ष के बारे में पढ़ा और मुझसे बताया कि वह इससे प्रभावित है. इस तरह से हम दोनों साथ आए.”
अपने इस फैसले के बाद भारत की इस सबसे तेज महिला धावक को परिवार के भारी विरोध का सामना करना पड़ रहा है. दुती चंद ने साल 2018 के एशियाई खेलों में रजत पदक जीता था. दुती के अलावा दुनिया में बहुत कम खिलाड़ी ऐसे हैं जिन्होंने समलैंगिक संबंधों की बात स्वीकारी है.
दुती ने बताया कि उनके घर के लोग इन संबंधों को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं. दुती के मुताबिक, “मेरी बड़ी बहन को लगता है कि मेरी साथी की नजर मेरी जायदाद पर है. वो मुझसे कह चुकी है कि इन संबंधों के चलते वो मुझे जेल भिजवा देगी.”
हालांकि दुती चंद ने अपनी साथी का नाम बताने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अपनी बात पब्लिक में बोलने का साहस दिया है.
दुती चंद का जन्म उड़ीसा के एक जुलाहे परिवार में हुआ था. इससे पहले उनको अपने करियर में काफी संघर्ष का सामना करना पड़ा है. उन्हें टेस्टोस्टेरोन की मात्रा अधिक होने के चलते प्रतिबंध का सामना भी करना पड़ चुका है.
जब 2018 में दुती के ऊपर से प्रतिबंध हटाया गया उसी साल हुए एशियाई खेलों में उन्होंने दो रजत पदक अपने नाम किए. उनका 100 मीटर में जीता गया रजत पदक एशियाई खेलों के 32 सालों के इतिहास में पहला पदक था.