नीति आयोग की बैठक में उठी राज्य योजनाओं को प्राथमिकता देने की मांग
बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने राज्य स्तर पर केंद्रीय प्रायोजित योजनाओं की जगह राज्य योजनाओं को महत्तव देने का सुझाव दिया है. नई सरकार बनने के बाद नीति आयोग की पांचवी काउंसिल बैठक में नीतीश ने ‘केंद्र प्रायोजित’ योजानाओं की जगह ‘केंद्रीय क्षेत्र’ की योजनाओं पर जोर दिया. उन्होंने कहा, “केंद्रीय क्षेत्र की इन योजनाओं का फैसला और खर्च राज्य सरकारों पर छोड़ दिया जाना चाहिए, ताकि वो अपनी प्राथमिकताओं और संसाधनों के अनुसार इन योजनाओं को चला सकें.”
बीजेपी और सहयोगी पार्टी जेडीयू के बीच जारी तनाव के दौर में जेडीयू प्रमुख नीतीश ने एक बार फिर बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग भी उठाई.
द टेलीग्राफ की खबर के मुताबिक नीतीश ने योजनाओं के संबंध में कहा,”राज्य सरकार केंद्र प्रायोजित सभी योजनाओं में भागीदार बनने के लिए मजबूर होती है. तब भी जब वो योजनाएं राज्य के लिए अधिक फायदेमंद ना साबित होती हों.”
जेडीयू प्रमुख ने सुझाव दिया कि केंद्र को अपनी प्राथमिकताएं ध्यान में रखते हुए केंद्रीय क्षेत्र की योजनाएं लागू करनी चाहिए और राज्य को अपने संसाधनों और प्राथमिकताओं को देखते हुए राज्य स्तर पर योजनाएं लागू करनी चाहिए.
नीतीश ने बैठक में केंद्र पर बिहार राज्य को मिलने वाले बजट को कम करने का भी आरोप लगाया. उन्होंने कहा,”वित्त आयोग के सुझावों के आधार पर केंद्र ने राज्य को मिलने वाला टेक्स 32 से 42 फीसदी कर दिया लेकिन इसके आधार पर बजट में राज्य को मिलने वाली हिस्सेदारी कम की गई है.”
नीतीश ने कहा कि बीते वर्षों में केंद्र प्रायोजित योजनाओं में राज्य बजट का एक बड़ा हिस्सा दिया गया, जिसकी वजह से राज्य स्तर की योजनाओं की अनदेखी हुई है. उन्होंने बताया कि बिहार ने साल 2015-16 में 4,500 करोड़, 2016-17 में 4,900 करोड़, 2017-18 में 15,335 करोड़ और 2018-19 में 21,396 करोड़ रुपये केंद्र की योजनाओं पर खर्च किए हैं.
“राज्य अपनी प्राथमिकताओं को किनारा करते हुए केंद्र प्रायोजित योजानाओं का हिस्सा बनने के लिए मजबूर होते हैं.”
पिछली मोदी सरकार में फंडिंग के ढांचे में बदलाव हुए थे, जिसके बाद अब बिहार में विधानसभा चुनावों से पहले नीतीश की टिप्पणी को सहयोगी बीजेपी के लिए आलोचना माना जा सकता है.
इससे पहले कैबिनेट मंत्रियों की नियुक्ति के दौरान जेडीयू ने बीजेपी के एक पद के ऑफर को ठुकरा दिया था. जिसके बाद हाल में बिहार कैबिनेट में हुई नियुक्ति में क्षेत्रीय सहयोगी बीजेपी के किसी भी मंत्री को जगह नहीं मिली.
उम्मीद की जा रही है कि नीतीश के बाद दूसरे पिछड़े राज्य भी ऐसी ही मांगे कर सकते हैं. वहीं नीतीश की लंबे समय से बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग पूरी होती है तो केंद्रीय प्रायोजित योजनाओं में केंद्र की हिस्सेदारी बढ़ जाएगी. साथ ही जीएसटी में कटौती से निजी क्षेत्र में निवेश को बढ़वा मिलेगा.
एक वरिष्ठ जेडीयू नेता के मुताबिक 2015 विधानसभा चुनावों से पहले नीतीश ने एनडीए का दामन छोड़कर राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस का साथ विशेष राज्य का दर्जा ना मिलने के चलते ही थाम था.